सवालों के घेरे में टीएमसी

इलमा अजीम 
पश्चिम बंगाल के संदेशखाली मामले में गुरुवार को मुख्य आरोपी शाहजहां शेख को पुलिस ने आखिर गिरफ्तार कर लिया। मगर इससे पहले जिस तरह पचपन दिन तक राज्य सरकार एक विचित्र जद्दोजहद में झूलती दिखी, उससे यही लगता है कि उसकी गिरफ्तारी के लिए दबाव बढ़ते जाने के बीच इस मसले पर जितना संभव हो सका, टालमटोल किया गया। अब अगर पुलिस मानती है कि शाहजहां को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद थे, तो इसके लिए पहले ही ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए? राज्य में विपक्षी दलों की ओर से सवाल उठाने के अलावा हालत यह हो गई कि वहां के राज्यपाल ने शाहजहां शेख की गिरफ्तारी के लिए बहत्तर घंटे की समय-सीमा दे दी थी। इसके साथ ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी इस मसले पर तीखे सवाल उठाए थे। गिरफ्तारी के बाद तृणमूल कांग्रेस ने शाहजहां को पार्टी से छह साल के लिए निलंबित करने की घोषणा की। हालांकि पुलिस के मुताबिक फिलहाल उसे संदेशखाली में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की टीम पर हमले से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया गया है, मगर अब तक जैसी खबरें आई हैं, उससे साफ है कि वह एक व्यापक अपराध तंत्र का हिस्सा था, जिसके कई पीड़ित थे! गौरतलब है कि पांच जनवरी को राशन घोटाला मामले में ईडी ने शाहजहां के ठिकानों पर छापेमारी की थी। इसी दौरान उसके समर्थकों ने ईडी अधिकारियों की टीम पर हमला कर दिया था, जिसमें संलिप्तता के आरोप लगने के बाद से वह फरार हो गया था। इस मामले के अलावा संदेशखाली में शाहजहां शेख जिस तरह की अवैध गतिविधियों में लगा था, वह पहले ही उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए पर्याप्त था। दरअसल, वहां स्थानीय महिलाओं ने शाहजहां और उसके समर्थकों पर यौन शोषण और जमीन पर कब्जा करने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। इस समूचे मामले के संदर्भ में पिछले कुछ समय के दौरान राज्यपाल, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और तथ्यान्वेषण दल ने भी तनावग्रस्त इलाके का दौरा किया था। मगर राज्य की पुलिस को समय पर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना जरूरी नहीं लगा। क्या ऐसा इसलिए था कि शाहजहां शेख तृणमूल कांग्रेस का एक कद्दावर नेता है और राज्य में इस पार्टी की सरकार है? अब उसकी गिरफ्तारी के बाद निलंबित करने के संदर्भ में तृणमूल की ओर से कहा जा रहा है कि पार्टी जो कहती है, वह करती है। हालांकि इस मामले में जिस स्तर तक शिथिलता बरती गई, उससे यही लगता है कि जब मामले पर पर्दा डालना संभव नहीं रहा, तब तृणमूल कांग्रेस एक तरह से अपना चेहरा बचाने की कोशिश कर रही है।

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