चुनाव का यक्ष प्रश्न
 इलमा अजीम 
लोकसभा चुनावों का बिगुल बज गया है। फिर चुनाव की बसंती बयार बहने लगी है। देश में जनता द्वारा लोकतंत्र का एक और अनुष्ठान शुरू हो रहा है। अब यक्ष प्रश्न है कि क्या यह सब कुछ जनता का, जनता के लिए ही होगा! क्योंकि ‘जनता के लिए’ का सामान्य अर्थ सबके अभ्युत्थान से भी है। पिछली सरकारों में जो नेता जनता को दोनों हाथों से लूट रहे थे वे आज लपक-लपककर पार्टी बदल रहे हैं। ज्यादातर तो ‘ईडी’ के डर से भाग रहे हैं। कुछ चूहे, जहाज के डूबने के डर से भाग रहे हैं। इनके लिए लोकतंत्र, परिवार का पेड़ है। पड़ोसी को छाया भी नहीं मिल सकती। जनता तो देख रही है। इनसे पैसा भी निकलवाना है और इनको लोकतंत्र के सिस्टम से बाहर भी निकालना है। भाजपा ने तो विधानसभा चुनावों में यह कार्य शुरू कर दिया था। रहा-सहा जनता इस बार कर देगी। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू करने की अधिसूचना जारी हो गई है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए विस्थापित वहां के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। देश में राम मंदिर का विवादित मुद्दा भी हल हो गया। समुदाय विशेष में नारी का सम्मान (तीन तलाक का मुद्दा) सुरक्षित किया गया। देश का दर्शन भी कहता है-‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।’ उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाली सरकारें बलात्कार-गैंगरेप-लव जिहाद और हलाला जैसी अपमानजनक परिस्थितियों से देश को मुक्त करेंगी। हम नीतिगत सुधार के दम पर दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यस्था भी बन गए हैं। अब आर्थिक महाशक्ति के रूप में तीसरे पायदान पहुंचने का संकल्प कोई दिवास्वप्न भी नहीं रहा। युवावर्ग इस संकल्प को साकार करने में ब्रह्मास्त्र है। तब आखिरी छोर पर खडे़ जन के अभ्युदय को भला कौन रोक सकता है। किंतु क्या राज और तंत्र के समस्त प्रयास ऐसा करने में सफल हो पाएंगे? सत्ता के लिए राजनीतिक दलों में मेल-मिलाप का दौर बन रहा है। लेकिन चिंता यह है कि देश में चुनाव असली मुद्दों से भटकने लगे हैं। हम देख रहे हैं कि चुनावों में जाति-वर्ग-क्षेत्र-भाषा आदि के प्रदूषण को सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर कहीं अधिक वरीयता मिलती रही है।परिवारवाद को बढ़ावा, कुर्सी का मोह और गारंटियों की रेवड़ियों से मतदाता को भरमाने का काम सब राजनीतिक दल कर रहे हैं। इस बार नव मतदाताओं की संख्या भी बहुत बड़ी है। इनके निर्णय भी दूरगामी ही होंगे। सभी सुलभ शक्तियों से स्वयं को सज्जित करने की आकांक्षा वाले इस ‘शक्तिमान’ की क्षमता रचनात्मकता लिए हैं, यह पूरे देश को विश्वास है। संभावनाओं वाला युवा मतदाता ही देश की ताकत है। इसलिए उम्मीद यह भी है कि वह सोशल इंजीनियरिंग’ के मकड़जाल से मुक्त रहकर निर्णय करेगा।

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