सरस्वती मेडिकल कॉलेज में दो दिवसीय सीएमई और प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न

टीबी पहचान और उपचार में आए बदलावों पर हुई विस्तृत चर्चा

कार्यक्रम में जागरूकता और स्क्रीनिंग बढ़ाने पर दिया गया जोर


हापुड़, 20 मार्च, 2024। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. सुनील कुमार त्यागी के कुशल निर्देशन में एनएच-स्थित सरस्वती मेडिकल कॉलेज में दो दिवसीय सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) और प्रशिक्षण कार्यक्रम बुधवार को संपन्न हुआ। कार्यक्रम का आयोजन विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) के मौके पर जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डा. राजेश सिंह के नेतृत्व में हुआ। कार्यक्रम के दूसरे दिन केवल टीबी एंड चेस्ट विभाग की फैकल्टी और पीजी स्टूडेंट मौजूद रहेजबकि मंगलवार को सभी विभागाध्यक्षप्रोफेसर और पीजी स्टूडेंट की मौजूदगी रही। दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान टीबी के लक्षणपहचान और उपचार पर विस्तार से चर्चा हुई। 

डीटीओ डा. राजेश सिंह ने सीएमई के टीबी की पहचान और उपचार में आए बदलावों से अवगत कराया। उन्होंने बताया- शासन के निर्देश पर 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए जनवरी, 2024 से क्षय रोगी के सभी परिजनों को टीबी प्रीवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) दी जा रही है। पहले टीपीटी क्षय रोगी के परिवार में पांच वर्ष तक के बच्चों को ही दी जाती थी। अपने संबोधन के दौरान डीटीओ ने मेडिकल कॉलेज से टीबी मुक्त भारत अभियान के लिए सहयोग मांगा। उन्होंने खासकर विश्व टीबी दिवस पर आउटरीच एरिया में जागरूकता कार्यक्रम और ओपीडी में स्क्रीनिंग बढ़ाने पर जोर दिया। कॉलेज के प्रिंसीपल डा. सौरभ गोयल उन्हें जिला क्षय रोग विभाग के निर्देशन में हर तरह से सहयोग करने का आश्वासन दिया।

कार्यक्रम में कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक डा. जेके गोयलचेस्ट एंड टीबी के विभागाध्यक्ष डा. शुभेंदु गुप्ताअसिस्टेंट प्रोफेसर डा. आशीष कौशिकडा. ललित गर्गराष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) से कॉलेज में तैनात मेडिकल ऑफिसर डा. उत्कर्ष सचान और टीबीएचवी मोहम्मद नासिर का सहयोग रहा। डा. उत्कर्ष सचान ने चेस्ट एंड टीबी के पीजी स्टूडेंट को फेफड़ों की टीबी और उसके प्रसार के बारे में विस्तार से बताया। 

जिला पीपीएम समन्वयक सुशील चौधरी ने बताया - दो सप्ताह तक खांसी या बुखारखांसी में खून या बलगम आनासीने में दर्द रहनाथकान रहनावजन कम होना और रात में सोते समय पसीना आना टीबी के लक्षण हो सकते हैं। इनमें से कोई एक भी लक्षण नजर आने पर टीबी की जांच करानी आवश्यक है। इसके अलावा शरीर के किसी हिस्से में गांठ भी टीबी की पहचान हो सकती है। सीएमई के दौरान यह भी बताया गया कि ओपीडी में आए रोगियों में से कम से कम पांच प्रतिशत की टीबी जांच करानी जरूरी है। कोविड की तरह अधिक जांच करके टीबी रोगियों की जल्दी पहचान की जा सकती है। हमारे देश में 90 प्रतिशत मामले फेफड़ों की टीबी के मिलते हैं और फेफड़ों की टीबी संक्रामक होती है। जल्दी उपचार शुरू करके ही टीबी के संक्रमण पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है। 

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