बढ़ते अपराध चिंताजनक
 इलमा अजीम 
बदायूं में दो बच्चों की हत्या की घटना से पूरा प्रदेश हिल गया है। दो मासूम बच्चों की नृशंस हत्या ने आम लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या लोगों पर से पुलिस का खौफ खतम हो चुका है। बदायूं की घटना को भी किसी आम आपराधिक घटना की तरह ही देखा जाएगा और अब एक औपचारिकता के तहत कानून अपना काम करेगा। मगर सवाल है कि राज्य की कानून व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाने के दावे के समांतर वहां अपराध की तस्वीर इतनी परेशान करने वाली क्यों है। कई अपराधों की प्रकृति को देखते हुए ऐसा लगता है मानो अपराधी के भीतर कानून-व्यवस्था या पुलिस का कोई खौफ नहीं था और वारदात को अंजाम देने में उसे कोई बाधा पेश नहीं आई। खबरों के मुताबिक, मंगलवार की शाम को बदायूं में दो युवक पड़ोस के ही एक परिचित के घर में पैसे मांगने का बहाना बना कर घुसे और तीन बच्चों पर चाकू से हमला करके दो बच्चों की हत्या कर दी।  हालांकि घटना के तूल पकड़ने के बाद पुलिस सक्रिय हुई और मुख्य आरोपी एक मुठभेड़ में मारा गया और उसके दो रिश्तेदारों को भी पकड़ा गया है। सवाल है कि सोच-समझ कर इतनी वीभत्स वारदात को अंजाम देने से पहले आरोपी के भीतर पुलिस और कानूनी कार्रवाई का खयाल तक क्यों नहीं आया। अगर कानून व्यवस्था चौकस होती है तो उसका असर भी दिखता है और अपराधी अपनी मंशा पूरी करने से पहले हिचकते हैं। सिर्फ इतने भर से अपराधों की तादाद में भारी कमी लाई जा सकती है। बदायूं में हत्या के बाद कार्रवाई करने को लेकर पुलिस जितनी चुस्त दिखी, उतनी सक्रियता आमतौर पर क्यों नहीं दिखती कि आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों के भीतर कोई डर बैठे? विचित्र है कि उत्तर प्रदेश में पिछले कई वर्षों से लगातार यह दावा किया जाता रहा है कि वहां हर स्तर पर अपराध के खिलाफ सबसे सख्त अभियान चलाया गया है और अपराधियों के हौसले पस्त हो गए हैं। जबकि हकीकत इससे उलट है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में हत्या की ज्यादातर घटनाओं का कारण आपसी विवाद था। वहीं छोटी बातों पर हत्या तक कर डालने वालों के भीतर कानून-व्यवस्था या पुलिस का खौफ नहीं है।

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