घरेलू हिंसा में पुरुष प्रताड़ना क्यों?

- डा. वरिंदर भाटिया
मीडिया द्वारा उपलब्ध अनेक पुख्ता और ताजा रिपोर्ट बता रही है कि दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत भी पुरुषों के ऊपर घरेलू हिंसा की समस्या से जूझ रहा है। महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए कठोर कानून भी बने हैं, लेकिन पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं। रिसर्च पर आधारित तथ्य बताते हैं कि देश में घरेलू हिंसा से संबंधित शिकायतों में करीब चालीस फीसदी शिकायतें पुरुषों से संबंधित होती हैं, यानी इनमें पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं और उत्पीडऩ करने वाली कुछ महिलाएं होती हैं।
भारत में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या सर्वेक्षण नहीं हुआ है जिससे इस बात का पता लग सके कि घरेलू हिंसा में शिकार पुरुषों की तादाद कितनी है, लेकिन कुछ गैर सरकारी संस्थान इस दिशा में जरूर काम कर रहे हैं। ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन’ और ‘माई नेशन’ नाम की गैर सरकारी संस्थाओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में नब्बे फीसदी से ज्यादा पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके होते हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पुरुषों ने जब इस तरह की शिकायतें पुलिस में या फिर किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर करनी चाही तो लोगों ने इस पर विश्वास नहीं किया और शिकायत करने वाले पुरुषों को हंसी का पात्र बना दिया गया। कुछेक महिलाओं द्वारा पुरुषों को प्रताडि़त करने से, पुरुषों द्वारा आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक देश में पुरुषों की आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा है। इसके पीछे तमाम कारणों में पुरुषों का घरेलू हिंसा का शिकार होना भी बताया जाता है जिसकी शिकायत पुरुष किसी फोरम पर कर भी नहीं पाते हैं। उनमें सबसे बड़ा तर्क यह है कि महिलाओं को सुरक्षा देने के जो कानून बने हैं, उनके दुरुपयोग से पुरुषों को प्रताडि़त किया जाता रहा है। मौजूदा कानून धारा 498-ए, अमरीका के जिस कानून से प्रेरित होकर यह कानून बनाया गया था, वह अमरीकी कानून जेंडर निरपेक्ष है और उसमें पुरुषों की प्रताडऩा के मामले भी देखे जाते हैं।
रेप से जुड़े सख्त कानून हों या महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बना कठोर कानून का यही मकसद है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लग सके, जो ठीक ही है, परंतु अब कई जगह इन कानूनों का तथाकथित दुरुपयोग भी देखने को मिलता है। यहां तक कि कुछ मामलों में देखा गया है कि फर्जी मामलों के जरिए ब्लैकमेल कर उगाही की कोशिश भी की जाती है। जैसे कि ब्रेकअप हो गया तो पार्टनर ने रेप का केस कर दिया। लंबे समय तक लिव-इन में रहे, लेकिन अनबन हो गई तो रेप का केस कर दिया, पति से अनबन हो गई, बात ज्यादा बिगड़ गई तो उसे घरेलू हिंसा के झूठे केस में फंसा दिया, इत्यादि। इस समय ऐसे मामलों में काफी वृद्धि हो रही है, लेकिन क्या इन घटनाओं के कारण झूठे हैं या नहीं, इसका जवाब तो आत्म दर्शन से भी आसानी से मिल सकता है। महिलाओं द्वारा पुरुषों पर हिंसा आज एक आम समस्या बन गई है। इसमें आर्थिक, शारीरिक, यौन और भावनात्मक शोषण के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक दुव्र्यवहार भी शामिल है, जो किसी व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। पुरुष और महिलाएं भी लिंग आधारित हिंसा के शिकार हैं।
भारत जैसे देश में, जो सदियों से पुरुष-प्रधान रहा है, लोगों के लिए यह विश्वास करना कठिन है कि पुरुष भी महिलाओं की तरह घरेलू हिंसा के शिकार हो सकते हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि भारत में किसी भी कानून में पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा को मान्यता नहीं दी गई है। हालांकि, आम धारणा के विपरीत, महिलाओं द्वारा मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से प्रताडि़त होने वाले पुरुषों की संख्या बढ़ रही है। देश में मौजूदा कानूनों को देखते हुए, ऐसा कोई खास कानून नहीं है जो पुरुषों को अंतरंग साथी की हिंसा से बचाता हो। हां, कानून के अलावा, कुछ अन्य कारण भी मौजूद हैं जिनके कारण ऐसे मामले दर्ज नहीं हो पाते हैं, इनमें शामिल हो सकते हैं- सामाजिक धारणा कि पुरुष मजबूत होते हैं और रोना मुश्किल होता है, या यदि उन्हें कानूनी सहायता मिलती है तो यह उनके और उनके लिए असुविधा का कारण बन सकता है। परिवार, और सूची बढ़ती जाती है।
ग्रामीण हरियाणा में 21 से 49 वर्ष की आयु के 1000 विवाहित पुरुषों के सर्वेक्षण के अनुसार, 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के दस में से एक पुरुष ने घरेलू हिंसा का अनुभव किया है। शोध से पता चलता है कि केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी ऐसी हिंसा के शिकार होते हैं। इस बात से इनकार करने का कोई कारण नहीं है कि महिलाओं को पुरुषों द्वारा अंतरंग साथी हिंसा का शिकार होना पड़ता है। लेकिन पुरुषों को भी इससे बचाने के लिए कोई कानून न होने का कोई उचित आधार नहीं है। हर कोई मानवाधिकार और लैंगिक समानता के अधीन है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 नागरिकों को समान व्यवहार के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है, और अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, लिंग, जाति या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है। भारतीय संविधान कहता है कि सभी नागरिकों को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार है। फिर पुरुष इसका अपवाद कैसे हो सकते हैं? इस क्षेत्र में घरेलू हिंसा को रोकने और कम करने के लिए, लिंग-तटस्थ कानून लागू किए जाने चाहिए और लिंगवादी कानून नहीं बनाए जाने चाहिए। पुरुषों के खिलाफ मानसिक और शारीरिक प्रताडऩा, न तो अब संवेदनहीन मुद्दा है, न ही इस पर बात करना महिला अधिकारों का किसी प्रकार का अतिक्रमण है। जहां तक पुरुषों के उत्पीडऩ का प्रश्न है, इस पर बात करना मानव अधिकारों का, समाज में संतुलन बनाए रखना है।
एक देशी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘मार्टर्स ऑफ मैरिज’ में ऐसे पुरुषों की कहानी बयां की गई है जिन्होंने झूठे केस में फंसाए जाने के बाद आत्महत्या कर ली। इस कड़वी हकीकत के बावजूद देश की उच्च अदालतों ने समय-समय पर कुछ ऐसे बड़े फैसले दिए हैं जो पीडि़त पुरुषों के लिए बहुत राहत वाले रहे हैं। हमारे देश के संविधान में और कानून में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। लेकिन क्योंकि आज इन प्रावधानों के बावजूद, समाज में पुरुषों के नाजायज शारीरिक और मानसिक उत्पीडऩ का रुझान पनप रहा है, इस बात पर एक फैसलाकुन सामाजिक बहस की दरकार है।
(कालेज प्रिंसिपल)

No comments:

Post a Comment

Popular Posts