अंतरिम बजट का निहितार्थ
 इलमा अजीम 
चुनावी वर्ष होने के कारण यह माना जा रहा था कि अंतरिम बजट में कुछ लोकलुभावन घोषणाएं हो सकती है, लेकिन सरकार ने परंपरा का निर्वहन करते हुए लेखानुदान ही पेश किया। बड़ी लोकलुभावन घोषणाओं से परहेज करके सरकार ने चकित जरूर किया। चुनावी वर्ष होने के बावजूद केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार किसी हड़बड़ी में नहीं है। लोकसभा में पेश किए गए अंतरिम बजट में सरकार का भरोसा नजर आया है। न तो लोक लुभावन घोषणाओं से जनता को रिझाने का प्रयास किया गया है और न ही सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव की जरूरत महसूस हुई है। सरकार ने जनता को सुनहरे भारत की तस्वीर दिखाई है। इसके साथ ही भविष्य का रोडमैप तैयार करने के लिए पूर्ण बजट का इंतजार करने को कहा है। वैसे भी मोदी सरकार की नीति रेवडिय़ां बांटने वाली नहीं रही है, लेकिन फैसलों का अंदाज हमेशा चकित करनेवाला जरूर रहा है। चुनावी वर्ष होने के कारण यह माना जा रहा था कि अंतरिम बजट में कुछ लोकलुभावन घोषणाएं हो सकती है, लेकिन सरकार ने परंपरा का निर्वहन करते हुए लेखानुदान ही पेश किया। बड़ी लोकलुभावन घोषणाओं से परहेज करके सरकार ने चकित जरूर किया। पिछले अंतरिम बजट (2019) में जब यह उम्मीद की जा रही थी कि कोई बड़ी घोषणा नहीं होगी, सरकार ने टैक्स स्लैब में बड़ा बदलाव करते हुए लोगों को चौंका दिया था। तब विपक्ष ने इस कदम को चुनावी फायदा लेने का प्रयास बताया था। इस बार सरकार के आश्वस्त होने की वजह भी है। 2019 में आए अंतरिम बजट से पहले जिन राज्यों में चुनाव हुए थे, उनमें तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के हाथ से सत्ता निकल गई थी। इस बार तीनों ही राज्यों के चुनावों में जीत से भाजपा के हौसले बुलंद हैं। विपक्ष बिखरा हुआ है और राम मंदिर की स्थापना के बाद से देश का राजनीतिक माहौल भाजपा के प्रति सकारात्मक दिख रहा है। देखा जाए तो भारत में विकास की गति उतार-चढ़ाव वाली रही है। वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का लक्ष्य पाने के लिए विकास दर में निरंतरता बनाए रखना बहुत ही जरूरी है।

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