आज भी प्रासंगिक हैं भगवान महावीर के उपदेश
- इंजी. अतिवीर जैन
जिस समय पृथ्वी पर अत्याचार और अधर्म बढ़ रहा था l धर्म के नाम पर यज्ञ में मूक पशुओं की बलि दी जा रही थी l लोगों में अज्ञान फैला हुआ था और वह आत्मा के उद्धार करने वाले मार्ग को भूल चुके थे l ऐसे भयंकर समय में जैन धर्म के चौबीसवे और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन कुंड ग्राम ( कुंडलपुर) वैशाली प्रांत के पास बिहार में ईसा से लगभग 599 वर्ष पूर्व हुआ था l भगवान महावीर के जन्म की इस तिथि को पूरे भारतवर्ष में महावीर जयंती के रुप मे ,जैन धर्म के सभी अनुयायी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं और रथ यात्रा निकालते हैं । मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना करते है ।
भगवान महावीर के पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था । आप नागवंश के कश्यप गोत्रीय थे । और कुण्डलपुर नगर के राजा थे l अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। आपकी माता त्रिशला देवी वैशाली प्रांत के राजा चेटक की पुत्री थी। वैशाली भारत का प्रथम गणतंत्र हुआ।प्रारंभ में महावीर का नाम वर्धमान था। उसके बाद विभिन्न घटनाओं के स्वरूप इनका नाम वीर , अतिवीर , सन्मतिवीर और महावीर रखा गया। भगवान महावीर ने 30 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और दीक्षा ले ली। बारह वर्ष तक जंगल में जाकर घोर तपस्या की ।
केवल ज्ञान की प्राप्ति होने पर 42 वर्ष की आयु में उन्होंने धर्म प्रभावना हेतु देश का जगह-जगह भ्रमण किया l लोगों को सत्य ,अहिंसा , अपरिग्रह, अनेकांत, अस्तेय ,ब्रह्मचर्य, क्षमा, त्याग, संयम, प्रेम, करुणा, शील, सदाचार जैसे उपदेश दिए । भगवान महावीर का कहना था किसी भी तरह के जीवो की हिंसा यानी एक इंद्रिय , दो इंद्रिय , तीन इंद्रिय , चार इंद्रिय , पांच इंद्रिय वाले किसी भी जीव की हिंसा हमें नहीं करनी चाहिए। हमें अपने मन में सब के प्रति दया भाव रखना चाहिए। मारना तो दूर की बात है किसी के प्रति मन में हिंसा का विचार लाना भी हिंसा का कारण है । आपने जियो और जीने दो को अहिंसा का स्वरूप बताया।आक्रमण होने पर विरोधी हिंसा को आपने क्षमा योग्य बताया अहिंसा से आपका मतलब संकल्पित हिंसा का त्याग था। आपका मानना था कि मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है l आप समाज में प्रचलित सभी प्रकार के ऊँच नीच ,जातिवाद ,वर्गवाद और रंगभेद का विरोध करते थे ।
आपके उपदेश मानव मात्र के लिए थे , ना कि किसी जाति , धर्म , या व्यक्ति विशेष के लिए l भगवान महावीर का अपरिग्रह सच्चा समाजवाद था l क्योंकि समाज में परिग्रह करने के कारण विषमता पैदा होती है । और जब परिग्रह बंद हो जाएगा तो सब समान हो जाएंगे l जिससे समाज में विषमता समाप्त हो जाएगी और सौम्य भाव आएगा ।भगवान महावीर ने 30 वर्ष तक अपने उपदेशों से जन-जन में धर्म प्रभावना की और लोगों को आपस में प्यार से रहना सिखाया ।
भगवान महावीर का मोक्ष 72 वर्ष की उम्र में कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन प्रथम बेला में निर्वाण प्राप्त पावापुरी बिहार मे हुआ था l जिसे जैन समाज वीर निर्वाण संवत के रूप में मनाता है। सभी जैन परिवार छोटी दीपावली पर सायंकाल में जैन मंदिरों में जाकर घी के दीप जलाते हैं।और बड़ी दीपावली कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन प्रातः काल भगवान महावीर की पूजा अर्चना के साथ विशेष लड्डू भगवान जी को चढ़ाया जाता है।
भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त होने पर सभी देवों, दिव्य आत्माओं ने भगवान की पूजा की ।और अत्यंत दीप्तिमान जलती प्रदीप पंक्तियों के प्रकाश से आकाश तक को प्रकाशित करती हुई पावापुर नगरी सुशोभित हुई l राजा श्रेणिक आदि सभी राजाओं ने अपनी प्रजा के साथ महान निर्वाण उत्सव बनाया । और इस समय से भगवान महावीर के निर्वाण उत्सव को मनाने की परंपरा चली आई जिसे दीपावली कहा गया। निर्वाण महोत्सव पर सभी नगरवासी अपने मकान की साफ सफाई करके घरों को सजाते हैं l परस्पर संबंधी और मित्रों में मिठाई बाँटते हैं l आनंद बनाते हैं ।संध्या के समय रोशनी करते हैं l दीपावली पर जो हटडी बनाई जाती है वह समोशरण का प्रतीक है । विशेष प्रकाश केवल ज्ञान का प्रतीक है ।दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का अर्थ है मोक्ष की लक्ष्मी प्राप्त करना ।
संध्या में घरों में निर्वाणकांड और पूजा पढ़कर रोशनी की जाती है , और खुशियां मनाई जाती हैं l इस वर्ष दीपावली पर भगवान महावीर को मोक्ष गए 2550 वर्ष हो जाएंगे ।इस कारण इस वर्ष य़ह पर्व विशेष रूप से पूरे देश में और विश्व में अनेकों कार्यक्रमों के साथ मनाया जा रहा है।
विश्व युद्ध की कगार पर बैठे विश्व के लिए भगवान महावीर के सत्य , अहिंसा जैसे उपदेश आज भी प्रासंगिक है। भगवान महावीर के उपदेश जियो और जीने दो से ही विश्व युद्ध की विभीषिका से बचा जा सकता है और मानवता को बचाया जा सकता है।
( पूर्व उपनिदेशक, रक्षा मंत्रालय , कंकरखेड़ा, मेरठ)
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