चुनावआयोग के फैसले का निहितार्थ
 इलमा अजीम 
पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए घोषित प्रोग्राम में दो घोषणाएं बेहद महत्त्वपूर्ण और देशहित में हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने अनिवार्य नियम घोषित किया है कि जो राजनीतिक दल दागी और कथित अपराधी चेहरों को उम्मीदवार बनाएंगे, वे उनके संपूर्ण ब्योरे तीन स्थानीय, लोकप्रिय अखबारों में प्रकाशित कराएंगे। दल यह भी स्पष्ट करेंगे कि दागी या आरोपित व्यक्ति को ही प्रत्याशी बनाने की विवशता क्या थी? क्या अन्य उम्मीदवार का चयन नहीं किया जा सकता था? इस संदर्भ में ऐसी रपटें हैं कि करीब 44 फीसदी विधायक दागी हैं या उनका आपराधिक रिकॉर्ड है। करीब 20-25 फीसदी सांसदों का भी रिकॉर्ड आपराधिक है। यह नियम चुनाव आयोग ने सभी प्रमुख दलों से संवाद के बाद तय किया है। पहली बार यह कोशिश की जा रही है कि राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाया जा सके और हमारे जन-प्रतिनिधि गंभीर आरोपों, दागों और आर्थिक घोटालों के अपराधी न हों। इसके लिए पारदर्शी और सार्वजनिक तंत्र निश्चित किया गया है। अब यह जनता के सामने साफ होगा कि कौनसा प्रत्याशी दागी और आरोपित है। इसके परिणाम देश के सामने होंगे। चुनाव आयोग का दूसरा महत्त्वपूर्ण फैसला देश की अर्थव्यवस्था के मद्देनजर है। आयोग ने राजनीतिक दलों को एक फॉर्म भरने का निर्देश दिया है कि चुनाव के दौरान जो गारंटियां दी जाती हैं या ‘मुफ्तखोरी’ के लोकलुभावन वायदे किए जाते हैं, उनके वित्तीय निहितार्थ क्या होंगे? वे देश या राज्य की वित्तीय स्थिति को कितना प्रभावित करते हैं? राजनीतिक दल इसका एक मोटा अनुमान लगाकर चुनाव आयोग को देंगे। आयोग का स्पष्टीकरण है कि यह मतदाता के अधिकार की रक्षा करने के मद्देनजर किया जा रहा है, लेकिन वित्तीय निहितार्थ या आशय के निर्देश व्यावहारिक नहीं हैं। राजनीति में ‘मुफ्तखोरी’ परिभाषित नहीं है। यदि 81 करोड़ भारतीयों को 5 किलो अनाज प्रति माह मुफ्त बांटा जा रहा है, किसानों को 6000 रुपए सालाना की सम्मान-राशि दी जा रही है, ‘मुफ्त’ गैस सिलेंडर की ‘उज्ज्वला’ योजना है, तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने 200-300 यूनिट्स बिजली मुफ्त देने, पानी, इलाज, कुछ शिक्षा मुफ्त मुहैया कराने आदि की योजनाएं घोषित की और देश भर में राजनीति कर रहे हैं, तो कांग्रेस समेत अन्य प्रमुख दल भी चुनाव जीतने के मद्देनजर ऐसी गारंटियां देने लगे हैं। महिलाओं, बुजुर्गों को एकमुश्त राशि भी दी जा रही है। इनके अलावा स्कूटी, मंगलसूत्र, साइकिल, लैपटॉप, बेरोजगारी भत्ता, 5 रुपए में भोजन की थाली, टीवी, साडिय़ां आदि ऐसे आकर्षण परोसे जा रहे हैं, जो चुनाव को सीधा प्रभावित करते हैं। किसानों के कर्ज माफ करने की भी राजनीतिक प्रवृत्ति जारी है। बेशक हमारे देश की जीडीपी विकास दर अच्छी है, लेकिन 150 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज भी है। अधिकतर राज्यों पर कर्ज के बोझ हैं। 

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