‘हमास’ और इजरायल में बेगुनाह लोगों का क्या कसूर
इलमा अजीम
इजरायल बहुत गुस्से में है और बहुतकनीकी ताकत वाला देश है। वह हमास को ‘मिट्टी’ बनाकर ही चैन की सांस लेगा। यह इजरायल की फितरत भी है। लाखों लोग गाजा से विस्थापित हो चुके हैं। पलायन के बाद वे कहां जाएंगे, अभी निश्चित नहीं है। इजरायल ने गाजा के बिजली, पानी, भोजन, दवाएं आदि की आपूर्ति बंद कर रखी है। इजरायल, अमरीका और मिस्र के बीच सहमति बनी है कि पश्चिमी पासपोर्ट वाले लोग सीमा पार करके मिस्र में आ सकते हैं। कोई भी अरब देश गाजा के विस्थापित शरणार्थियों को अपने देश में शरण देने को तैयार नहीं है। उधर हमास के संभावित अड्डों और आतंकियों के ठिकानों पर इजरायल की सेना का समन्वित आक्रमण तैयार है। हमला आसमान, जमीन, समंदर से एक साथ किया जाएगा। हमास के दो शीर्ष कमांडरों-अली कादी और मुराद अबू मुराद-को मार कर ढेर करने का दावा इजरायल सेना ने किया है। बीती 7 अक्तूबर को इजरायल में किए गए खौफनाक हमलों का नेतृत्व इन्हीं कमांडरों ने किया था। बहरहाल अभी तक 3500 से ज्यादा लोग, दोनों तरफ के, मारे जा चुके हैं और घायलों की संख्या 12,000 से अधिक बताई जा रही है। बेशक यह युद्ध है, लिहाजा मासूम लोग भी गिरफ्त में आएंगे। मासूमों की लाशें भी बिछेंगी, लेकिन यह भी मानना चाहिए कि यह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध है। इजरायल ने फिलिस्तीन वाले हिस्से पर आक्रमण नहीं किया है। दरअसल हमास 100 फीसदी आतंकी संगठन है। जिस तरह पाकिस्तान में जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, तहरीके तालिबान, अफगानिस्तान में तालिबान और हक्कानी, लेबनान में हिजबुल्ला, मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड और नाइजीरिया में बोको हराम आदि संगठित, चरमपंथी आतंकी संगठन हैं, गाजा पट्टी में हमास उनसे कम आतंकी नहीं है। यदि हिजबुल्ला के पास करीब 1.5 लाख मिसाइलें, रॉकेट आदि की ताकत बताई जाती है, तो हमास के पास 5000 रॉकेट और युद्ध के अन्य उपकरण कहां से आए? वह अब भी इजरायल पर रॉकेट दाग रहा है? उसे आर्थिक मदद कौन देश देते रहे हैं? इजरायल ने हमास पर युद्ध थोपा नहीं है, बल्कि आतंकियों ने हमले कर जिन 1300 से अधिक लोगों को मारा है, बच्चों के सरकलम किए हैं, महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हत्या कर, उनके नग्न जिस्मों पर ‘राक्षसी नाच’ किया है, बेशक इजरायल अपने नागरिकों का प्रतिशोध जरूर लेगा। यही उसकी फितरत और ताकत है। हमारे मुस्लिम संगठन और नेता चीख-चीख कर इसे फिलिस्तीन की आजादी और जीने के अधिकार पर हमला करार दे रहे हैं। यह सोच और विश्लेषण ही गलत हैं। मुस्लिम चेहरे सवाल उठा रहे हैं कि बीते सालों में 1.5 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को क्यों मार दिया गया? उनमें करीब 35,000 बच्चों का कत्लेआम भी क्यों किया गया? लेकिन मुस्लिम ठेकेदारों ने अभी तक हमास को ‘आतंकी’ नहीं माना है, आश्चर्य है। अधिकतर इस्लामी देश भी हमास को आतंकी मानने पर खामोश हैं। दरअसल आतंकवाद संपूर्ण मानवता के लिए ऐसी घातक स्थिति है, जिससे कोई भी देश अछूता नहीं है, लेकिन हैरत है कि संयुक्त राष्ट्र संघ आज तक आतंकवाद की सर्वसम्मत परिभाषा तय नहीं कर पाया है।
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