साख पर सवाल

 इलमा अजीम 
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कोशिशों पर शायद ही किसी को एतराज हो, मगर पिछले कुछ वर्षों से आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो जिस ढंग से सक्रिय नजर आ रहे हैं, उसे लेकर उनकी साख पर सवाल खड़े हो गए हैं। विपक्षी दल लगातार आरोप लगा रहे हैं कि ये एजंसियां केंद्र सरकार के इशारे पर बदले की भावना और नाहक परेशान करने की नीयत से कार्रवाई कर रही हैं। इसकी शिकायत सर्वोच्च न्यायालय में भी की गई थी, मगर उसने इनकी कार्रवाइयों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू है, मगर उनमें भी इन केंद्रीय एजंसियों की छापेमारी और राजनेताओं, उनके रिश्तेदारों आदि से पूछताछ चल रही है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी लोगों के घरों पर छापेमारी हुई तो उन्होंने इन एजंसियों को लेकर बहुत तल्ख और आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उनकी भाषा पर एतराज जताते हुए स्पष्टीकरण मांगा गया, तो उन्होंने न तो उसके लिए किसी तरह का अफसोस जाहिर किया और न अपने बयान को अनुचित माना। उन्होंने कहा कि जब एक मुख्यमंत्री को इस तरह परेशान किया जाएगा, तो उसकी भाषा ऐसी ही निकलेगी।  केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई के समय और व्यक्तियों के चुनाव को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। यह सवाल बार-बार पूछा जाता है कि ये एजेंसियां उन्हीं नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों करती हैं, जो केंद्र के विपक्ष में हैं और सत्ता पक्ष के खिलाफ बोलते रहते हैं। फिर यह भी कि जब भी किसी राज्य में चुनाव होना होता है, वहीं क्यों अधिक छापेमारी की जाती या पुराने मामलों की फाइलें खोल कर जांच शुरू कर दी जाती है। विपक्षी दल उन नेताओं के नामों की सूची भी बार-बार दोहराते रहते हैं, जिनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के पास भ्रष्टाचार से जुड़े मामले दर्ज हैं, मगर उनके सत्ता पक्ष में चले जाने के बाद उनके खिलाफ जांच रोक दी गई हैं। फिर यह भी तथ्य बार-बार दोहराया जाता है कि इन एजेंसियों की कार्रवाई में तो तेजी आई है, मगर वास्तव में दोष सिद्धि नगण्य हुई है। कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय भी प्रवर्तन निदेशालय के गिरफ्तारियों आदि से जुड़े अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या करते हुए उसे मर्यादा में रह कर काम करने को कह चुके हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों पर आमजन का भरोसा अब भी बहुत कमजोर नहीं हुआ है, देखने की बात है कि वे खुद इस भरोसे को कैसे और कितना कायम रख पाती हैं।

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