अब निजी अस्पताल के टीबी मरीजों को भी मिल सकता है सरकारी योजनाओं का लाभ
मेरठ। निजी चिकित्सक से इलाज करवा रहा टीबी मरीज भी निजी क्षेत्र में ही इलाज जारी रखते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकता है। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत इसका प्रावधान किया गया है, ताकि देश को टीबी मुक्त बनाने में निजी क्षेत्र की भी हिस्सेदारी हो सके।
जिला क्षय रोग अधिकारी डा गुलशन राय ने बताया कि निजी चिकित्सक चाहें तो अपनी फीस लेकर नियमित इलाज करने के साथ अन्य सभी सुविधाएं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों से मरीज को दिलवा सकते हैं। ऐसे मरीजों को सीबीनॉट जांच, एचआईवी व मधुमेह की जांच, दवाएं, निक्षय पोषण योजना का लाभ और एडॉप्शन की सुविधा भी दी जा सकती है। ऐसे में अगर कोई भी ऐसा मरीज है, जो टीबी के महंगे इलाज का खर्च वहन करने में सक्षम न हो तो उसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या जिला क्षय रोग केंद्र भेज कर मदद करें।
डॉ गुलशन राय ने बताया कि नये टीबी मरीज की सूचना देने वाले निजी चिकित्सक को भी 500 रुपये देने का प्रावधान है। अपनी देखरेख में मरीज का इलाज पूरा करवाने पर 500 रुपये और दिये जाते हैं। यही नहीं, नये टीबी मरीज के गैर सरकारी सूचनादाता को भी 500 रुपये देने का प्रावधान है। अगर कोई निजी चिकित्सक अपनी फीस लेकर मरीज का अपनी देखरेख में इलाज करता है और दवा व अन्य सुविधाएं सरकारी अस्पताल से दिलवाता है, तब भी चिकित्सक को ही इलाज सफल होने पर लाभ मिलेगा, लेकिन अगर मरीज निजी क्षेत्र से सरकारी में ट्रांसफर हो जाता है तो आऊटकम का लाभ नहीं मिलता है। निजी क्षेत्र के टीबी मरीज को दवा और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने के लिए सरकारी क्षेत्र में मरीज को ट्रांसफर करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।
जिला समन्वयक नेहा सक्सेना ने बताया कि टीबी मरीज की सरकारी अस्पतालों में ड्रग सेंस्टिविटी जांच की जाती है। ड्रग सेंसिटव मिलने पर छह महीने इलाज चलता है और मरीज ठीक हो जाता है। ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का मरीज होने पर इलाज की अवधि डेढ़ से दो साल तक की हो सकती है। प्रत्येक टीबी मरीज की एचआईवी व मधुमेह की जांच कराई जाती है। चेस्ट फिजिशियन डॉ एएन त्रिगुण ने एक्स रे तकनीकी के बारे में जानकारी दी।
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