महिला आरक्षण बिल एक सशक्त कदम
- प्रदीप कुमार नायक
नए संसद भवन का शुभारंभ "नारी शक्ति वंदन विधेयक" के माध्यम से महिला आरक्षण बिल पारित कराना आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सराहनीय कदम कहा जा सकता है। लेकिन कुछ शर्तों और नियमों को जोड़कर इस बिल महिलाओं के लिए एक अनिश्चितता की स्थिति सामने रख दी है। सबसे पहली शर्त यह है कि महिलाओं को इसका फ़ायदा आगामी चुनावों में ना मिलकर जनगणना और परिसीमन प्रकिया पूरी होने के बाद मिलेगा। यानी 2029 के चुनावी साल में इसको प्रभावी किया जाएगा।
दूसरी यह कि इसमें ओबीसी एवं अल्पसंख्यक महिलाओं को इससे बाहर रखा गया है। तीसरी शर्त यह है कि राज्यसभा एवं राज्य विधानपरिषद में महिला आरक्षण नहीं होगा। जबकि ये तीनों ही कारण हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था तथा लैंगिक एवं सामजिक समानता को चोटिल करने वाले साबित होंगे।
संविधान के लागू होने के 67 साल बाद भी साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 542 सदस्यों में से मात्र 78 यानि 14.4% महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलना भारत की आधी आबादी के साथ एक बड़ा अन्याय ही कहा जा सकता है।
1970 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर वीना मजुमदार की अध्यक्षता में महिलाओं की सामाजिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार इत्यादि को प्रभावित करने वाले संवैधानिक, प्रशासनिक और कानूनी प्रावधानों की जाँच के लिए एक समिति गठित की गई। "टूवार्ड्स इक्वेलिटी" के लिए महिला अधिकार एवं लैंगिक समानता को सुनिश्चत करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके बाद सरकारों द्वारा कोई सशक्त प्रयास नहीं किया गया। वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा में तो पारित करा दिया गया था लेकिन लोकसभा में पारित कराने में असफल रहे। महिलाओं को अपने अधिकारों से वंचित रखने के लिए इस विधेयक की असफलता किसी एक सरकार की कमी नहीं कही जा सकती है यह उस वक़्त के सभी विपक्षी दलों की एक बड़ी गैर ज़िम्मेदारी रही है।
आज हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में पहचान दिलाने और एक विश्वगुरु राष्ट्र बनाने के लिए संकल्पबद्ध है और दूसरी ओर भारत की आधी आबादी को जो अधिकतर ग्रामीण भारत में दिन - रात मेहनत कर रही है उसको उसके लोकतान्त्रिक अधिकारों से दरकिनार कर रहें है, यह एक स्वस्थ और समृद्ध प्रयास नहीं कहा जा सकता है।
वर्तमान में लगभग 70 करोड़ महिला आबदी का मात्र 82 (15%) और राजस्थान में मात्र 12 प्रतिशत महिलाओं द्वारा प्रतिनिधित्व करना एक सशक्त लोकतंत्र के लिए न्यायोचित नहीं है।
वर्तमान समय में महिलाएँ अपने हुनर से अपनी प्रतिभा का हर क्षेत्र में लोहा मनवा रही है, जिसके लिए अब सरकारों द्वारा मजबूत कदम उठाने चाहिए। वैश्विक स्तर पर किसी भी विकसित राष्ट्र की पहचान वहाँ की महिलाओं की सहभागिता और प्रतिनिधित्व आनुपातिक रूप से पुरुषों के बराबर होने से है। उन राष्ट्रों ने महिलाओं के समावेशी विकास और राष्ट्र निमार्ण की प्रक्रियाओं में महिलाओं को शामिल किया है इसलिए आज उनका वर्चस्व है।
यही बात आज भारत के समग्र विकास के आवश्यक है। वर्तमान समय की नजाकत को समझते हुए केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महिला सशक्तिकरण और समृद्धिकरण की इस दिशा में बड़ी संजीदगी से काम करते हुए महिलाओं के लिए राजनीति और नीति निर्माण प्रक्रिया में सहभागिता से उनके अधिकारों को सुनिश्चित कर, उन्हें मजबूती से समान अवसर देकर शामिल करना चाहिए। जिससे महिला अपने स्वयं के साथ-साथ अपने घर, समाज और राष्ट्र निर्माण में अपनी क़ाबिलियत और जुनून से हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी जिम्मेदारियों का सजगता और संवेदनशीलता से निर्वहन कर सके।
इसके लिए सभी राजनैतिक दलों को महिलाओं को अपनी राजनीति के लिए सिर्फ वोट बैंक ना समझ कर महिलाओं एवं अपने देश के समावेशी विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष अपनी आवाज बुलंद कर महिला आरक्षण बिल में रही कमियों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए दूर करने हेतु सामूहिक प्रयास करने चाहिए।
(स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार)
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