भारत की सांस्कृतिक विरासत है जनजातीय लोक कलाए"
"बालक बालिकाओं व महिलाओं को जनजातीय लोक कला का दिया प्रशिक्षण"
मेरठ। "आजादी के अमृत महोत्सव" के इस दौर में जब भारतीय परंपरा और गौरव को निखारने, सवारने ,संरक्षित करने का प्रयास निरंतर किया जा रहा है।भारत की सांस्कृतिक विरासत जनजातीय लोककलाओ पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कार्यशाला के दूसरे दिवस कलामनीष कलाकार प्रोफेसर नूपुर शर्मा ने बतौर मुख्य अतिथि तथा विशिष्ट अतिथि डॉ प्रदीप चौधरी चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय एवं आयोजन सचिव प्रोफेसर अलका तिवारी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का उद्घाटन किया।
कार्यशाला के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में कला प्रशिक्षकों द्वारा स्थानीय महिलाओं बालक, बालिकाओं व विद्यार्थियों को भारत की समृद्ध परंपरा लोक कलाओं जनजातीय कलाओं की चित्रकारी करना सिखाया।प्रोफेसर अलका तिवारी ने कहा कि भारत सदैव कला और शिल्प के माध्यम से अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहा है भारत में कुल 645 जिला जनजातीय है भारत की जनजातीय लोक कला सादगी सद्भावना और रूपांकन को व्यक्त करती है मध्य प्रदेश की गोंड कला, मंडाला आर्ट, बिहार की मधुबनी कला, आंध्र प्रदेश की कलमकारी, महाराष्ट्र की वर्ली कला, राजस्थान की पिचकी, गुजरात की पिथृरो कला प्रमुख जनजातीय लोककला है प्रोफेसर संगीता शुक्ला , कुलपति चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के दिशा निर्देशन में ललित कला विभाग निरंतर बालक बालिकाओं महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रहा है।
प्रोफेसर नूपुर शर्मा, मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में कहा कि आज जब बाजारवाद के इस दौर में कलाओं का भी बाजार तैयार हो चुका है और कलाओं की प्रस्तुतियां निवेश के तौर पर होने लगी है ऐसे में इन जनजातीय कलाओं की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।
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