संरक्षण में है पृथ्वी का अस्तित्व
पिछले दिनों लोकसभा के मानसून सत्र में जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2022 बिना किसी विरोध के पारित हो गया। असल में यह विधेयक 2002 के जैविक विविधता अधिनियम को संशोधित करता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) के लक्ष्यों को हासिल करने में भारत की सहायता के लिए लागू किया गया था। पूरी दुनिया की जलवायु में तेजी से परिवर्तन हो रहा है, बेमौसम आंधी, तूफ़ान और बरसात से हजारों लोगों की जान जा रही है, साथ ही सभी ऋतु चक्रों में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। सच्चाई यह है कि पर्यावरण या जैव विविधता संरक्षण सीधे-सीधे हमारे अस्तित्व से जुड़ा मसला है। हाल ही में विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा जारी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’ के अनुसार वैश्विक स्तर पर 1970 से 2018 के बीच 48 वर्षों के दौरान वन्य जीवों की आबादी में 69 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हैरान कर देने वाली बात है कि नदियों में पाए जाने वाले जीवों की करीब 83 फीसदी आबादी अब नहीं बची है। वास्तव में जैव विविधिता के संरक्षण के बिना विकास का कोई महत्व नहीं है। इस विधेयक में किए गए महत्वपूर्ण बदलाव औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देते हैं और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति का समर्थन करते हैं। वे इस क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान और निवेश को प्रोत्साहित करते हैं। साथ ही औषधीय उत्पाद बनाने वाले चिकित्सकों और कंपनियों के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण से अनुमति लेने की आवश्यकताओं को भी कम करते हैं। इसका अन्य उद्देश्य वन उपज का लाभ स्थानीय लोगों तक पहुंचाना भी है। एक सच्चाई यह भी है कि जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के जितने भी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और कार्यक्रम होते हैं, उनमें विकासशील और विकसित देशों के बीच आर्थिक मुद्दों पर विवाद होता है। विकसित देश अधिक जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि विकासशील देश ही जैव विविधता दुनिया में गर्म होती जलवायु, कम होते जंगल, विलुप्त होते प्राणी, प्रदूषित होती नदियों, सभी को बचाने का काम करें। जैव विविधता के लिए आधुनिक विकास और प्रकृति संरक्षण दोनों के बीच संतुलित तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है। जैव विविधता पर संकट इसका ही नतीजा है। कुल मिलाकर देश के प्राकृतिक संसाधनों का ईमानदारी से दोहन और जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास के साथ-साथ जनता की सकारात्मक भागीदारी की जरूरत है। जनता के बीच जागरूकता फैलानी होगी, तभी इसका संरक्षण हो पायेगा। 

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