यूसीसी पर बहस जारी है
संसद का मानसून सत्र 20 जुलाई से 11 अगस्त तक चलेगा। मणिपुर हिंसा, समान नागरिक संहिता, अडानी की जेपीसी जांच, महंगाई, बेरोजगारी समेत ऐसे मुद्दे उठाए जाएंगे, जिन पर हंगामा होना निश्चित है। जिंदगी के बुनियादी और आधिकारिक मुद्दों पर एक ही कानून लागू होगा, जिस तरह अपराध के कानून लागू होते हैं। फिलहाल कोई भी मसविदा सामने नहीं है। सिर्फ अवधारणा के आधार पर ही बहस जारी है। नए संसद भवन में भी यही मानसिकता रहेगी कि विपक्ष मुद्दों पर शोर मचाएगा, नारेबाजी करेगा और सत्ता-पक्ष अपने तरीके से सदन की कार्यवाही चलाना चाहेगा। कुछ मुद्दों पर सरकार की सोच भिन्न हो सकती है, लिहाजा कार्यवाही का स्थगन बार-बार हो सकता है। अब यह कोई नया संस्कार या व्यवधान नहीं है। हालांकि कोई पुष्टि नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि मानसून सत्र में ही समान नागरिक संहिता का विधेयक संसद में पेश किया जा सकता है। उससे पहले विधि आयोग ने 13 जुलाई तक देश की जनता और धार्मिक-सामाजिक संगठनों की राय मांगी है। सबसे विवादास्पद और सनसनीखेज पक्ष यह होगा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी अपना मसविदा विधि आयोग के सामने प्रस्तुत करना तय किया है। समान नागरिक संहिता पर विपक्ष विभाजित-सा लगता है, लेकिन उसमें गहरी दरारें नहीं होंगी और न ही अभी दोफाड़ के आसार हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी (आप), शिवसेना (उद्धव गुट), जनता दल-यू और जद-एस सरीखे विपक्षी सैद्धांतिक तौर पर समान नागरिक संहिता के समर्थन में हैं, जबकि कुछ दल फिलहाल विचार कर रहे हैं। जद-एस तो विपक्षी एकता की छतरी तले अभी नहीं है और ‘आप’ का मन डांवाडोल है। शरद पवार की एनसीपी का रुख अभी आधा-अधूरा है। बहरहाल इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी के सार्वजनिक संबोधन के बाद हलचलें बढ़ गई हैं। अभी संसद का पूरा शीतकालीन सत्र सत्ता-पक्ष के लिए शेष है।वे चाहेंगे, तो यह बिल संसद में पारित किया जा सकता है। फिर कानून बनना तो औपचारिकता भर है, लेकिन संसद में इस बिल को पारित कराने के लिए कमोबेश दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। उसके मुताबिक, लोकसभा में सरकार को 362 सांसदों का समर्थन चाहिए। भाजपा-एनडीए के ही करीब 335-340 सांसद हैं। सरकार को वाईएसआर कांग्रेस और बीजद के समर्थन मिलते रहे हैं। राज्यसभा में भाजपा-एनडीए के 110 सांसद हैं। समान नागरिक संहिता का बिल पारित कराने को 57 और सांसदों के समर्थन की दरकार है।
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