मृत्युकालिक कथन पर अधिवक्ताओं ने किया मंथन

अधिवक्ता परिषद गौतमबुद्धनगर इकाई का स्वाध्याय मंडल
गौतमबुद्धनगर। अधिवक्ता परिषद गौतमबुद्धनगर इकाई के स्वाध्याय मंडल में वरिष्ठ अधिवक्ता चौधरी हरिराज सिंह ने मृत्यु कालिक कथन के संबंध में विचार रखे।
बार एसोसिएशन सभागार में अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए चौ.हरिराज ने कहा कि साक्ष्य के मूल सिद्धांतों का अपवाद है और इसका आधार उस अवधारणा पर है कि "मृत्यु शय्या पर व्यक्ति झूंठ नहीं बोलता"। लेकिन इस कथन पर तभी विश्वास किया जा सकता है जब यह सिद्ध हो जाये की वह विधि द्वारा स्थापित मानदंडों को पूर्ण करता है।
उन्होंने कहा कि मृत्यु कालिक कथन यदि सत्य सिद्ध हो जाता है तो उसको किसी अन्य साक्षी के समर्थन की आवश्यकता नहीं रहती। इसके विपरीत मृत्यु कालिक कथन पर विश्वास न करने के सिद्धांत पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा की यह साक्ष्य "सर्वोत्तम" की श्रेणी में नहीं रखी जा सकती है क्योंकि इसमें शपथ नहीं होती। यह सुनी-सुनाई साक्ष्य की परिधि में आती है।
उन्होंने कहा कि मुनियप्पन बनाम मद्रास राज्य में सर्वोच्च न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि जब मृत्यु कालिक कथन अधूरा हो परन्तु अपराध का वर्णन पूर्ण हो तो भी उसपर विश्वास किया गया है। यह सुनिश्चित किया जाना अति आवश्यक है कि मृत्युकालिक कथनकर्ता की मानसिक स्थिति बयान देने लायक़ थी। मानसिक स्थिति जाँचने हेतु केवल चिकित्सक का प्रमाण पत्र पर्याप्त नहीं है।
स्वाध्याय मण्डल में विषय प्रवेश अधिवक्ता सत्यम पहल ने किया और संचालन सरिता मलिक ने किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन अध्यक्ष अमित शर्मा ने किया।
इस मौके पर राजेंद्र नागर, नितिन त्यागी, सुमन नागर, रामशरण नागर, ध्रुव रस्तोगी, राकेश वर्मा, किशन लाल पराशर, प्रवीण कुमार, मोहित यादव, उदित नागर, नरेंद्र टाईगर, देवा भाटी, धर्मेंद्र नागर सहित सैकड़ों अधिवक्ता मौजूद रहे। 

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