एंडोवस्कुलर इंटरवेंशन तकनीक ब्लॉकेज नसों को खोलने के लिए सबसे कारगर -डा गुप्ता

नसों के ब्लॉकेज को लेकर मैक्स अस्पताल ने किया लोगों को जागरूक
मेरठ।  एंडोवस्कुलर इंटरवेंशन तकनीक के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई है जिनकी मदद से पेरिफेरल आर्टेरियल डिजीज (पीएडी), डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) और वैरिकाज़ वेन्स जैसे कई एड्स वाले मरीजों का इलाज किया जा सकता है। इसके अलावा मिनिमली इनवेसिव तकनीक के आने से ज्यादातर केस में सर्जरी या अन्य ओपन प्रक्रिया से बचा जा सकता है। इलाज के एडवांस तरीके उपलब्ध हैं लेकिन लोगों के बीच जागरूकता की कमी है.।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी वैशाली गाजियाबाद ने  गुरुवार को  शहर में एक जागरुकता सत्र आयोजित किया। जिसमें वैस्कुलर एंड एंडोवस्कुलर सर्जरी के प्रिंसिपल कंसल्टेंट व इंचार्ज डॉक्टर कपिल गुप्ता ने  बताया कि बहुत पेचीदा मामलों का इलाज किया है और मिनिमली इनवेसिव एंडोवैस्कुलर प्रक्रिया का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है।डॉक्टर कपिल गुप्ता ने बताया वैस्कुलर की समस्याओं में समय से इलाज बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. साथ ही वक्त के साथ-साथ वैस्कुलर तकनीक भी काफी बेहतर हो रही हैं। पेरिफेरल आर्टरी डिजीज यानी नसों में खून जम जाना आजकल एक आम समस्या हो गई है। इसमें सिकुड़ी हुई नसों के कारण हाथों-पैरों में खून का फ्लो कम हो जाता है। शुरुआती स्टेज में ब्लड क्लॉट की दवाइयों से ठीक किया जा सकता है, थ्रोम्बोटिक थेरेपी या एंजियोप्लास्टी से भी इसे ठीक किया जा सकता है। लेकिन नसों में ब्लॉकेज जब बहुत गहरा जाता है तो बायपास सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है. आमतौर पर जब लंबा ब्लॉकेज हो जाता है या नसें सिकुड़ जाती हैं तो इस सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है। हार्ट की बायपास सर्जरी की तरह ही, शरीर के दूसरे हिस्से की रक्त वाहिका या सिंथेटिक कपड़े से बनी रक्त वाहिका का उपयोग करके एक ग्राफ्ट बाईपास बनाया जाता है।
मेरठ के रहने वाले 60 वर्षीय राजेंद्र कुमार को बाएं पैर में बहुत गंभीर दर्द था, वो 50 मीटर चलने में भी सक्षम नहीं थे. राजेंद्र कुमार पहले स्मोकिंग भी करते थे. राजेंद्र जब इस कंडीशन में अस्पताल आए तो उनकी गहन जांच पड़ताल की गई, सीटी एंजियोग्राफी भी की गई. जांच में बाएं पैर की नसों में बहुत ज्यादा ब्लॉकेज सामने आया, जिसके चलते पैर में खून का फ्लो नहीं हो रहा था, जिस कारण बहुत दर्द था. मरीज को एंजियोप्लास्टी के जरिए स्टेंट लगाने के लिए ले जाया गया ताकि नसों को खोला जा सके. अब राजेंद्र कुमार को बिल्कुल दर्द नहीं है और वो आराम से चल सकते हैं। एक और मरीज को हाथ में दर्द था। 56 वर्षीय महिला कमलेश को दाहिने हाथ में बहुत ज्यादा दर्द था, इसके साथ ही पूरे हाथ में जलन होती थी. तीन महीने तक अंगुलियों का रंग बदल गया था, वो नीली पड़ गई थीं. मैक्स अस्पताल वैशाली आने से पहले उन्होंने अन्य जगह डॉक्टरों से इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं पहुंचा. वह दिन भर दर्द के कारण रोती रहती थी और रात को सो नहीं पाती थी. महिला को जब वैशाली के मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में लाया गया, तो यहां गहन जांच पड़ताल के बाद उन्हें इलाज दिया गया। इसके बाद उनका दर्द चला गया और अब वह अपने राइट हैंड का इस्तेमाल नॉर्मल तरीके से कर रही हैं और आराम से सो भी रही हैं। 

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