जीवन रक्षक हैं प्रकृति के उपहार

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
यदि चिकित्सकों की मानें तो देश में अधिकांश लोगों में विटामिन डी की डेफिसिएंसी है। हो सकता है यह आंकड़ा अतिश्योक्तिपूर्ण होने के साथ ही अधिक अपर साइड में हो पर इतना तो साफ है कि देश दुनिया में विटामिन डी की कमी के आंकड़े दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। विटामिन डी जिसका सबसे सहज स्रोत केवल कुछ मिनटों तक धूप सेवन से प्राप्त हो सकता है, आज उसी की कमी से रोगियों की संख्या अधिक होती जा रही है। दरअसल प्रकृति के अनमोल उपहारों से हम लगातार दूर होते जा रहे हैं। अत्यधिक भागमभाग, शहरीकरण और सीमेंट कंकरीट की गगनचुंबी इमारतें प्रकृति के उपहार से हमें वंचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। मिट्टी, पानी, धूप, की सहजता को छोड़कर हम दवाओं और केमिकल्स में ईलाज ढूंढ़ने लगे हैं।


दिल्ली एम्स के हालिया अध्ययन में सामने आया है कि हार्ट फेलियर के मरीजों को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी दिया जाए तो उनके लक्षण में काफी कमी आ जाएगी। दरअसल एम्स के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि 70 फीसदी दिल्लीवासियों में विटामिन डी की डेफिसिएंसी पाई गई है। देखा जाए तो विटामिन डी की कमी मस्तिष्क, रक्त संचार प्रणाली, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, मांसपेशियों से संबंधित रोगों में दर्द और कमजोरी, फेफड़ों के रोगों में अस्थमा और सांस लेने में परेशानी, हड्डियों की कमजोरी और डायबिटिज जैसी बीमारियों का कारक है। एक समय था जब खासतौर से सर्दियों में तो तेल की मालिश कर धूप में बैठना नियमित आदत में शुमार होता था। नौकरीपेशा लोग अवकाश के दिन तो धूप में अवश्य बैठते थे। आज तो हालात यह हो गए कि गर्मी के मौसम में सनबर्न से बचाने वाली क्रीम को प्राथमिकता दी जाती है।
देखा जाए तो हम महंगी से महंगी दवाएं खाने के लिए तैयार हैं पर केवल और केवल 20 मिनट धूप का सेवन नहीं कर सकते। इसका परिणाम भी साफ है। हड्डियों में दर्द, फ्रैक्चर, जल्दी-जल्दी थकान, घाव भरने में देरी, मोटापा, तनाव, अल्जाइमर जैसी बीमारियां आज हमारे जीवन का अंग बन चुकी हैं। शरीर की जीवन शक्ति या यों कहें कि प्रकृति से मिलने वाले स्वास्थ्यवर्द्धक उपहारों से हम मुंह मोड़ चुके हैं और नई से नई बीमारियों को आमंत्रित करने में आगे रहते हैं। यह आश्चर्यजनक लेकिन जमीनी हकीकत है कि केवल और केवल मात्र पांच प्रतिशत महिलाओं में ही विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। देश की 68 फीसदी महिलाओं में तो विटामिन डी की अत्यधिक कमी है।

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