स्वामी विवेकानन्द--युवाओं के प्रेरणास्रोत
किसी भी देश का वर्तमान बेशक बुजुर्गों पर निर्भर है मगर याद रखिए देश का भविष्य उसके युवाओं पर ही निर्भर है और इस दृष्टिकोण से भारत विश्व भर में सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश है।अतः यह यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि देश का भविष्य सुरक्षित है और उज्ज्वल है।लेकिन यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि यदि यही युवा शुरुआती दौर में ही नकारात्मक कार्यों में पड़ गया तो फिर भठ्ठा भी बैठ सकता है जबकि यदि यही युवा शुरुआती दौर में ही सकारात्मक भूमिका में लग गया तो फिर निसंदेह प्रगति है,उन्नति है।इसके लिए जरूरी है कि आज का युवा,जो कल का भविष्य है,वो ऐसे लोगों से प्रेरणा लें जिनका जीवन अपने आप में एक किताब है,एक ग्रन्थ हैं,एक आन्दोलन है,एक भरा-पूरा जीवन है।एक युवा ने एक युवा का भाषण सुना,जिसमें भाषण देने वाला युवा अपने भाषण में संदेश दे रहा था कि पैसे और स्त्री के पीछे मत भागो बल्कि इस काबिल बनो कि ये दोनों आपके पीछे भागे सुनने वाले युवक ने सुना और पैसे के लिए कार्य करना शुरू कर दिया।कई साल कड़ी मशक्कत करने के बाद वह युवक खाली हाथ ही रहा और एक दिन अचानक जिस युवक का भाषण उसने सुना था,वही मिल गया।मिलने पर युवक ने अपनी बात बताई कि आपने कहा था कि पैसे के पीछे मत भागो बल्कि ऐसे काम करो कि पैसा आपके पीछे भागे मगर मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ जबकि मैंने पैसे के लिए कड़ी मेहनत की है।भाषण देने वाले युवक का जबाब था कि कोई भी काम जब कामना से किया जाता है तब उसके वांछित परिणाम नहीं मिलते जबकि यदि कोई काम साधना के तहत किया जाता है तब निश्चित रूप से उसके वांछित परिणाम मिलते हैं।ये विचार देने वाले कोई और नहीं बल्कि जिनके जन्मदिन पर देश भर में प्रतिवर्ष बारह जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है-स्वामी विवेकानंद थे।तो यकीन मानिए आज के युवा को ऐसी सोच चाहिए,ऐसी विचारधारा चाहिए,जो उसके जीवन को बदल दे।स्वामी विवेकानंद का साफ मानना था कि ईश्वर पाए यकीन करने के लिए पहले खुद पर यकीन करना होगा।आज के युवाओं के लिए उनका यह विचार बेहद जरूरी है कि जब तक मेहनत करते रहो जब तक कि लक्ष्य प्राप्त ना हो जाओ,रुको नहीं,थको नहीं ।स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि व्यक्ति की सबसे बड़ी गुरु उसकी अपनी आत्मा ही है क्योंकि यहीं से वो अच्छी दिशा निर्धारित कर सकता है।उन्होंने कहा है कि याद रखिए मानव का संघर्ष जितना कठिन होगा,उसकी जीत भी उतनी ही बड़ी होगी।ये ऐसे विचार हैं जो आज के आभासी दुनिया में उलझे हुए युवा की जरूरत है और उसकी जिंदगी को बदल सकते हैं।स्वामी विवेकानन्द मात्र पैंतीस वर्ष तक जिए मगर इतनी छोटी-सी उम्र में उन्होंने जब वे मात्र तीस वर्ष के युवा थे,शिकागो के विश्व धर्म संसद में सबको अपना भाषण देकर न केवल चौंका दिया था बल्कि भारत की संस्कृति,संस्कार को विश्व का सिरमौर बना दिया था।इस युवक का जन्म 1863 में हुआ और 1893 में उन्होंने यह कारनामा कर दिखाया।1902 में उन्होंने अंतिम सांस ली,उन पर रामकृष्ण परमहंस के विचारों का प्रभाव रहा।आज के दौर में जरूरत है युवाओं को उनके विचारों से प्रेरणा लेने की और उनके विचारों को आत्मसात करने की।युवा जरूर ऐसा करें।
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