टीबी के उपचार में लापरवाही, अपनों के लिए भी पड़ेगी भारी
- लक्षण आते ही नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर कराएं जांच
- पूरा- नियमित उपचार कराएं, अपनों पर न आए आंच
हापुड़, 27 जनवरी, 2023। भारत को टीबी मुक्त करने के लिए अपने जनपद को टीबी मुक्त करना जरूरी है, जिले को टीबी मुक्त करने के लिए अपने गांव और मोहल्ले को टीबी मुक्त करना है, इस मुहिम की शुरुआत हमें अपने परिवार से करनी होगी और परिवार को टीबी से बचाने के लिए जरूरी है कि यदि किसी व्यक्ति में टीबी से मिलते-जुलते लक्षण नजर आएं तो तत्काल जांच और पुष्टि होने पर उपचार शुरू करना जरूरी है।
इसके विपरीत यदि कोई जांच और उपचार में लापरवाही करता है तो सबसे पहले उसके नजदीक रहने वालों, यानि उसके अपनों को ही संक्रमण का खतरा उत्पन्न हो जाता है। यह बातें मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. सुनील कुमार त्यागी ने कहीं। उन्होंने कहा समय से टीबी का उपचार शुरू किया जाए और चिकित्सकीय परामर्श के मुताबिक पूरा व नियमित उपचार लिया जाए तो टीबी न केवल पूरी तरह ठीक हो जाती है बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों का भी बचाव हो जाता है।
जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डा. राजेश सिंह ने बताया - दरअसल पल्मोनरी (फेफड़ों की) टीबी सांस के जरिए हवा में फैलती है। यदि किसी घर में क्षय रोगी है तो उसके संपर्क में आने से परिवार के अन्य सदस्यों के भी संक्रमण की चपेट में आने का खतरा रहता है, हालांकि विभाग की ओर से रोगियों को इस संबंध में पूरी जानकारी के साथ ही उसके परिजनों की जांच भी की जाती है, लेकिन रोगी के संपर्क में आने वालों को संक्रमण से बचाने के लिए जरूरी है कि रोगी का समय से उपचार शुरू हो। उपचार शुरू होने के बाद उसके संक्रमण देने की आशंका काफी कम हो जाती है।
डा. राजेश सिंह ने बताया- रोगी को खुले हवादार कमरे में रखें। रोगी खुले में थूकने से बचें और प्रयास करें कि अन्य लोगों के संपर्क में आते समय मॉस्क से मुंह और नाक अच्छी तरह से ढकी हो। उपचार न शुरू कर एक क्षय रोगी एक वर्ष में 10 से 15 रोगियों को संक्रमण दे देता है। सावधानी और जल्दी उपचार से इस चेन को तोड़ा जा सकता है और यही टीबी मुक्त भारत के निर्माण का आधार होगा।
जिला पीपीएम समन्वयक सुशील चौधरी ने बताया - टीबी तो शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है लेकिन फेफड़ों की टीबी सबसे खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह संक्रामक होती है। फेफड़ों की टीबी से ग्रसित व्यक्ति के बलगम में टीबी के जीवाणु होते हैं। बोलते, खांसतें या छींकते समय नाक और मुंह से निकलने वाले ड्रॉपलेट (जो पांच फीट तक जा सकते हैं) हवा में फैलकर सांस के जरिए दूसरे व्यक्ति के फेफड़ों तक पहुंचकर उसे संक्रमित कर देते हैं। इसलिए टीबी के लक्षण आने पर टीबी की जांच अवश्य कराएं। टीबी की जांच और उपचार का प्रावधान सरकार की ओर से सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर किया गया है।
टीबी के लक्षण :
- दो सप्ताह से अधिक खांसी
सीने में दर्द रहना
- अचानक वजन गिरना
- भूख कम होना
- बुखार रहना
- रात में सोते समय पसीना आना
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