सोचना तो हम सबको पड़ेगा
- कृष्ण कुमार निर्माण
हमारे देश और समाज में जाति का बोलबाला तो बहुत पहले से था ही जो आज तक भी खत्म नहीं हुआ है,बल्कि दिनों-दिन हद से ज्यादा बढ़ रहा है और सबके जेहन में गहरे तक समा रहा है। जिसके कारण देश और समाज में बहुत सारी समस्याएं हैं जो ठीक होने की बजाय निरंतर बढ़ रही हैं क्योंकि जब तक जाति नहीं जाती तब तक ये समस्याएं ठीक हो भी नहीं सकती।
यह भी सच है कि सम्भवतः इस देश से,इस समाज से जाति जा भी नहीं सकती क्योंकि एक तो नेता लोगों को यह सत्ता प्राप्त करने में रास आती है।दूसरी बात यह कि कुछ तथाकथित उच्च जाति के लोगों को यह जाति व्यवस्था रास आती है क्योंकि उनकी रोजी-रोटी चलती है और उनका बड़प्पन बना रहता है।तीसरा जब तक जाति नहीं जाती तब तक हालात नहीं बदलेंगे जो कि कुछ ठेकेदारों को मुफीद लगते हैं।पिछले काफी दिनों से अब तो धर्म भी लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है जबकि किसी विद्वान ने कहा है कि जब भी धर्म सिर चढ़कर बोलने लग जाए तो समझ लीजिए कि  उस वक्त धर्म,धर्म न होकर  जहर बन जाता है और अब यकीनन ऐसा हो रहा है।


अब तो देश में लोग रोजगार की समस्या भूल चुके हैं। गरीबी भूल चुके हैं।शिक्षा भूल चुके हैं। स्वास्थ्य से उनका कोई लेना-देना नहीं है।सुरक्षा से भी कोई खास सरोकार नहीं लगता। देश की सार्वजनिक सम्पतियों का क्या हाल है,इस पर कोई भी सोच-विचार करने को तैयार नहीं बल्कि इस पर चर्चा करना एक आउट-डेटेड मुद्दा माना जाता है और पता नहीं क्या-क्या कहा जाता है? जाति की समस्या तो थी ही, अब ऊपर से धर्म सिर चढ़कर बोलने लग गया और अब तो कमाल यह ही गया है कि कौन क्या खा रहा है और उसे क्या खाना चाहिए? कौन क्या पहन रहा है और उसे क्या पहनना चाहिए? कौन क्या लिख रहा है और उसे क्या लिखना चाहिए? कौन कैसी फिल्में बना रहा है और उसे कैसी फिल्में बनानी चाहिए?कौन कैसे गाने लिख,गा रहा है और उसे कैसे गाने लिखने,गाने चाहिए?कौन क्या जयकारा लगाएगा और कौनसा जयकारा नहीं लगाएगा?सब कुछ नाम से तय किया जा रहा है।
लेखकों, कवियों, नायकों का बहिष्कार किया जा रहा है। यहाँ तक कॉमेडी पर भी यह बोला जा रहा है कि ये नहीं बोला जा सकता? कौन मंदिर जाता है, कौन नहीं जाता,इसका पूरा ब्यौरा रखा जा रहा और बाकायदा अपने-अपने तरिके से भुनाया जा रहा है। धर्मग्रन्थों पर टिप्पणियां हो रही हैं।पैगम्बरों तक को नहीं बख्शा जा रहा है। नई-नई शब्दावली घड़ी जा रही है और विज्ञापनों से भी ज्यादा तेज प्रचारित की जा रही है। महामारी को भी टोने-टोटकों से भगाया जा रहा है। हैरत है कि आजकल सब्जियां भी धार्मिक शक्ल ले रही हैं। दुकानों तक को धार्मिक बनाया जा रहा है।रेहड़ी तक को धर्म से जोड़ा जा रहा है।
आखिर क्या हो गया अपने देश को, समाज को, जो ये सब हो रहा है जो नहीं होना चाहिए। क्या केवल यही बातें रह गई हैं करने-कराने को? क्या बाकी सभी समस्याओं का हल हो गया है? यकीन मानिए इस सबके लिए हम नेताओं को दोषी नहीं ठहरा सकते, राजनीति को गाली नहीं दे सकते बल्कि इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। हमें ही अपनी विचारधारा बदलनी होगी और किसी के बहकावे में आने से बचना होगा ताकि ये सब बातें खत्म हों और हम सब मिलकर जाति और धर्म का भेदभाव खत्म करके मानवीय गुणों से भरपूर होकर देश और समाज का विकास करते हुए चले जाएं।निरंतर बोलते रहिए जय राम जी की क्योंकि भली तो करेंगे राम ही।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts