औरत के खिलाफ हिंसा का खतरा जीवनपर्यंत बना रहता है, बल्कि उसके पैदा से पूर्व भी- भ्रूण लिंग पहचान एवं गर्भपात से लेकर बाल-विवाह, जबरन शादी, दहेज-संबंधी हिंसा, वेश्यावृत्ति में धकेलना, सार्वजनिक स्थानों एवं कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना, प्रतिष्ठा-वध, तेजाबी हमला और बलात्कार इत्यादि रूपों में। सामाजिक रीत में कन्या की पैदाइश से बचना और पुत्र प्राप्ति के प्रति आसक्ति सदा रही है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक कारकों ने इस अधोगति को बढ़ाया है। पुत्र-चाहना ने पति-परिवार द्वारा जन्मपूर्व लिंग जांच के जरिए गर्भ की तालेबंदी कर दी है। लिंग पहचान में यदि लड़की हुई तो गर्भपात करवाने की सोची जाती है, अधिकतर यह गर्भवती की मर्जी के बिना होता है और यह उसके यौन एवं प्रजनन अधिकारों का हनन है। इस काली करतूत पर नकेल डालने के लिए बेशक विशिष्ट कानून हैं, जिनमें इरादन गर्भपात के लिए सख्त सजा का प्रावधान है, फिर भी अनेक राज्यों में जन्म पूर्व लिंग-जांच का गैरकानूनी खेल चला हुआ है। जगह निजी हो या सार्वजनिक, महिला विवाहित हो या नहीं, उस पर बलात्कार और शारीरिक-मौखिक छेड़छाड़ सहित यौन हिंसा का खतरा सदा मंडराता रहता है। यौन हिंसा की शिकार बनी बहुत सी महिलाएं समाज खासकर परिवार और जाति में बेजा फजीहत और हिकारत भरे अनुभवों की आशंका से गहरी शर्मिंदगी ढोने को मजबूर हो जाती हैं। यह मनोस्थिति आत्महत्या या खुद को चोटिल करने वाली हिंसा की ओर प्रेरित कर सकती है। घरेलू हिंसा पीड़ित स्त्री को यदि नए सुरक्षा कानून के अंतर्गत अपनी शिकायत दर्ज करवाने में मुश्किल हो तो सुरक्षा अधिकारी का संरक्षण दिए जाने का प्रावधान है। पर देशभर में ऐसे सुरक्षा अधिकारियों की भर्ती और नियुक्ति नाकाफी है, ज्यादा संख्या अतिरिक्त-समय में काम करने वालों की है, तिस पर शिकायत दर्ज करवाने में पीड़िता की सहायता हेतु यथेष्ट संसाधन नहीं है। इन विषयों पर बृहद प्रयास किए बगैर शैक्षणिक संस्थान, कार्यस्थल, परिवार, समुदाय और मीडिया में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का खात्मा एक बहुत बड़ी चुनौती बनी रहेगी।
औरत के खिलाफ हिंसा का खतरा जीवनपर्यंत बना रहता है, बल्कि उसके पैदा से पूर्व भी- भ्रूण लिंग पहचान एवं गर्भपात से लेकर बाल-विवाह, जबरन शादी, दहेज-संबंधी हिंसा, वेश्यावृत्ति में धकेलना, सार्वजनिक स्थानों एवं कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना, प्रतिष्ठा-वध, तेजाबी हमला और बलात्कार इत्यादि रूपों में। सामाजिक रीत में कन्या की पैदाइश से बचना और पुत्र प्राप्ति के प्रति आसक्ति सदा रही है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक कारकों ने इस अधोगति को बढ़ाया है। पुत्र-चाहना ने पति-परिवार द्वारा जन्मपूर्व लिंग जांच के जरिए गर्भ की तालेबंदी कर दी है। लिंग पहचान में यदि लड़की हुई तो गर्भपात करवाने की सोची जाती है, अधिकतर यह गर्भवती की मर्जी के बिना होता है और यह उसके यौन एवं प्रजनन अधिकारों का हनन है। इस काली करतूत पर नकेल डालने के लिए बेशक विशिष्ट कानून हैं, जिनमें इरादन गर्भपात के लिए सख्त सजा का प्रावधान है, फिर भी अनेक राज्यों में जन्म पूर्व लिंग-जांच का गैरकानूनी खेल चला हुआ है। जगह निजी हो या सार्वजनिक, महिला विवाहित हो या नहीं, उस पर बलात्कार और शारीरिक-मौखिक छेड़छाड़ सहित यौन हिंसा का खतरा सदा मंडराता रहता है। यौन हिंसा की शिकार बनी बहुत सी महिलाएं समाज खासकर परिवार और जाति में बेजा फजीहत और हिकारत भरे अनुभवों की आशंका से गहरी शर्मिंदगी ढोने को मजबूर हो जाती हैं। यह मनोस्थिति आत्महत्या या खुद को चोटिल करने वाली हिंसा की ओर प्रेरित कर सकती है। घरेलू हिंसा पीड़ित स्त्री को यदि नए सुरक्षा कानून के अंतर्गत अपनी शिकायत दर्ज करवाने में मुश्किल हो तो सुरक्षा अधिकारी का संरक्षण दिए जाने का प्रावधान है। पर देशभर में ऐसे सुरक्षा अधिकारियों की भर्ती और नियुक्ति नाकाफी है, ज्यादा संख्या अतिरिक्त-समय में काम करने वालों की है, तिस पर शिकायत दर्ज करवाने में पीड़िता की सहायता हेतु यथेष्ट संसाधन नहीं है। इन विषयों पर बृहद प्रयास किए बगैर शैक्षणिक संस्थान, कार्यस्थल, परिवार, समुदाय और मीडिया में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का खात्मा एक बहुत बड़ी चुनौती बनी रहेगी।
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