भारत में विदेशी निवेश

इन दिनों विभिन्न वैश्विक आर्थिक संगठनों के द्वारा विदेशी निवेश से संबंधित रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि दुनिया में आर्थिक मंदी की चुनौतियों के बीच भी भारत में विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ रहा है। हाल ही में 2 नवंबर को वैश्विक निवेश बैंक मॉर्गन स्टेनली के द्वारा ‘व्हाई दिस इज इंडियाज डिकेड’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत विश्व अर्थव्यवस्था में नई शक्ति प्राप्त कर रहा है। ऐसे में भारत में दुनिया के निवेशकों के लिए विदेशी निवेश किया जाना हर प्रकार से लाभप्रद माना जा रहा है। साथ ही भारत में तेजी से बढती हुई आर्थिक अनुकूलताओं के कारण वर्ष 2030 के अंत से पहले भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। पिछले दिनों 2 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट ‘इन्वेस्ट कर्नाटक-2022’ को वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए कहा  कि भारत में निवेश का मतलब लोकतंत्र और विश्व के लिए निवेश है। यद्यपि यह दुनिया के लिए आर्थिक संकट और युद्ध की परिस्थितियों से जूझने का समय हो सकता है, लेकिन दुनियाभर के अर्थ विशेषज्ञ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए भारत को चमकता स्थान (स्पाट) बता रहे हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पिछले वर्ष 2021-22 में भारत के रिकॉर्ड स्तर पर 84 अरब डॉलर का विदेशी निवेश मिला था। यदि हम इस बात पर विचार करें कि जब पूरी दुनिया में आर्थिक और वित्तीय मंदी का माहौल है, विश्व की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों के द्वारा भारत को एफडीआई के लिए प्राथमिकता क्यों दी जा रही है, तो हमारे सामने कई चमकीले तथ्य उभरकर सामने आते हैं। नि:संदेह देश में विदेशी निवेश के लिए पारदर्शी व स्थायी नीति है। देश में विदेशी निवेश के लिए रेड कारपेट बिछाने का माहौल बना है। देश में प्रतिभाशाली नई पीढ़ी की कौशल दक्षता, आउटसोर्सिंग और देश में बढ़ते हुए मध्यम वर्ग की चमकीली क्रय शक्ति के कारण विदेशी निवेश भारत की ओर तेजी से बढऩे लगा है। वस्तुतः: भारतीय घरेलू बाजार और अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। इस समय जहां भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है, वहीं दुनिया में सबसे तेज डिजिटलीकरण वाला देश भी है। निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकेगी और साथ ही भारत अपनी आर्थिक अनुकूलताओं से वर्ष 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर दिखाई दे सकेगा।

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