शोध करने, आलोचना करने और आज की समस्याओं का समाधान करने के लिए आज की नई सोच के महत्व को नकारा नहीं जा सकता - प्रो अब्बास रजा नायर
आज का व्याख्यान गजल में आधुनिक प्रगति के तत्वों की पहचान पर आधारित था : प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी
उर्दू विभाग के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में "नई सदी में उर्दू ग़ज़ल" पर कार्यक्रम का आयोजन
मेरठ 29/नवंबर 2022
"नई शताब्दी में साहित्य का विषय उर्दू ग़ज़ल था, लेकिन हर युग का कुछ नाम होना चाहिए। क्योंकि जब प्रगतिवाद का विरोध ठंडा पड़ने लगा तो नासिर काजमी ने अरबाब ज़ौक, अपने मित्रों के साथ नये विषयों की नींव रखी। आज नासिरवाद का नया साहित्यिक विमर्श प्रारंभ हो रहा है। इसलिए आधुनिक प्रगतिशील साहित्य और नई प्रगतिशील ग़ज़ल की शुरुआत यहीं से होनी चाहिए। प्रगतिशीलों की तुलना में आज की समस्याएं अधिक कठिन हैं। आधुनिकतावाद और उत्तर आधुनिकतावाद अब पारंपरिक हैं। आज शांति के नाम पर अत्याचार हो रहा है, नारी की गरिमा के नाम पर नारी का शोषण हो रहा है।आज अल्पमत की समस्याएँ गम्भीर होती जा रही हैं और आज की समस्याओं पर शोध करने और आलोचना करने और बनाने के लिए आज के नए मस्तिष्क का महत्व है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। ये शब्द लखनऊ से लखनऊ से आये विशेष वक्ता के रूप में "नई सदी में उर्दू ग़ज़ल" पर उर्दू विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ और इस्माइल राष्ट्रीय महिला पीजी कॉलेज, मेरठ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किए गए व्याख्यान में प्रो. अब्बास रजा नायर ने कहे थे। भारत और पाकिस्तान के 21वीं सदी के कवियों की कविताओं के साथ-साथ उर्दू की तमाम नई बस्तियों को आधुनिक और प्रगतिशील तत्वों से युक्त करके इस तरह प्रस्तुत किया है कि उनके अर्थ और अवधारणाएं स्वतः स्पष्ट हो रही थीं। उन्होंने प्रोफेसर असलम जमशेद पुरी के साहित्यिक जीवन की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने दो वर्षों में एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित की हैं और जिस तरह से वे कथा साहित्य की रचना और आलोचना के संबंध में कविता पर शोध कर रहे हैं, यह उनका ही अंग है।
इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत मौलाना जिब्रील द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत से की गई। प्रख्यात लेखक और आलोचक तथा उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने अध्यक्षता की। डॉ. शादाब अलीम ने परिचय और स्वागत, संचालन डॉ. आसिफ अली और डॉ. इरशाद सयानवी तथा डॉ. इफत जकिया ने धन्यवाद दिया।
कार्यक्रम में दो भाग शामिल थे। पहले भाग में पीएचडी छात्र ताबिश फरीद का वाइवा हुआ। जिसका विषय था ''नासिर काजमी की रोमांटिक शायरी'' और कार्यक्रम के दूसरे भाग में लखनऊ से आए प्रोफेसर अब्बास रज़ा नायर ने ''नई सदी में उर्दू ग़ज़ल'' विषय पर विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किया.।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर असलम जमशेद पुरी ने कहा कि आज का व्याख्यान गजल में आधुनिक प्रगति के तत्वों की पहचान करने पर आधारित था। प्रोफेसर अब्बास रजा नायर ने विषय को बड़ी खूबसूरती से समेटा है, जो नई सदी में उर्दू ग़ज़ल के अलग-अलग विषय और पहलू हो सकते हैं, उन्होंने बड़े विस्तार से समझाया है। इस सदी में जो ग़ज़ल और अफसा बन रही हैं, उसे क्या नाम दिया जाए? उत्तर आधुनिकतावाद समाप्त हो गया है, अब समय आ गया है कि इसके अंत की घोषणा की जाए। आज लेखक पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, आज अनेक कवियों और लेखकों की रचनाओं में में अल्पसंख्यक और दलित विमर्श दिखाई देता है जो इस सदी के पहले देखने को नहीं मिलता था। इस युग को आधुनिक प्रगतिवाद कहा जा सकता है।
इस अवसर पर डॉ. अलका वशिष्ठ, डॉ. शबिस्ता आस मुहम्मद, फराह नाज, गुलनाज, नवेद खान, मदीहा असलम, फैजान जफर, मुहम्मद शमशाद, उम्मेदीन शायर सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद थे.
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