नागरिक भी जवाबदेह
कोर्ट की सख्ती और सरकारों के दावों के बावजूद दीपावली पर खूब पटाखे फोड़े गए। इससे अगर दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने वाले हरियाणा तथा उ.प्र. के शहरों में दिवाली के पटाखों से प्रदूषण गंभीर स्तर तक जा पहुंचा है, तो यह गंभीर चिंता का मसला है। निस्संदेह रोक का उल्लंघन करने के बाद भी वायु गुणवत्ता में आई गिरावट के लिये जितनी सरकारें जिम्मेदार हैं, उतने ही नागरिक भी। यदि लोग जिम्मेदारी दिखाते और इस समस्या के समाधान में भागीदारी निभाते तो स्थिति विकट नहीं होती। वैसे सच तो यह है कि स्वच्छ हवा नागरिकों की जीवन रक्षा के लिये ही है। लेकिन सीमा से अधिक पटाखे फोड़ने वाले लोग बच्चों, बुजुर्गों तथा बीमारों की सेहत की फिक्र नहीं करते। देश के तमाम शहरों में अंधाधुंध आतिशबाजी का यही निष्कर्ष है। इस बाबत हमें अपने संवैधानिक कर्तव्यों का भी निर्वहन करना चाहिए था। मंगलवार की सुबह वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर सवा तीन सौ पार करना नागरिक के रूप में हमारी विफलता को ही दर्शाता है। वायु गुणवत्ता सूचकांक हरियाणा के गुरुग्राम, फरीदाबाद व उत्तर प्रदेश के नोएडा, ग्रेटर नोएडा तथा गाजियाबाद में तीन सौ का आंकड़ा पार कर गया, जो हवा की गुणवत्ता की बेहद खराब स्थिति को दर्शाता है। दरअसल, वायु गुणवत्ता सूचकांक का सौ तक पहुंचना सामान्य, लेकिन तीन सौ को पार करना बहुत खराब स्थिति को दर्शाता है। कोर्ट की सख्ती के चलते सरकारों ने दिल्ली आदि जगहों में पटाखों पर प्रतिबंध की घोषणा तो कर दी, लेकिन इसे अमलीजामा पहनाने की कोशिश नहीं की। प्रशासनिक इकाइयों को क्षेत्रवार बांटकर अधिकारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए थी। पुलिस को मुस्तैद देखकर चिंता में भी कुछ लोग जिम्मेदार व्यवहार करते। दरअसल, इस बाबत लंबे समय से तैयारी की जानी चाहिए। स्कूल व कालेजों में छात्र-छात्राओं को प्रदूषण के खतरे बताकर जागरूक किया जाना चाहिए था। निस्संदेह, पर्व व त्योहार हमारे गहरे अहसासों से जुड़े हैं। इनसे जुड़ी प्रथाओं व परंपराओं से सख्ती से नहीं निपटा जा सकता। किसानों के मामले में ऐसा ही होता है। दरअसल, इसके लिये लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए। समय रहते जागरूकता अभियान चलाये जाने चाहिए। लोगों को बताएं कि इनसे उनको व समाज के लोगों को कितना नुकसान पहुंचता है। लोगों की उस सोच पर रोक लगनी चाहिए, जिसमें प्रतिस्पर्धा के रूप में पटाखे जलाने का खेल होता रहता है। कमोबेश पराली जलाने से उत्पन्न संकट के मूल में भी जागरूकता का अभाव है, जो ठंड शुरू होने पर दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पहले से व्याप्त वायु गुणवत्ता संकट को और बढ़ा देता है। सरकारें भी सोचें कि न्यायालय के आदेश, सरकारों के वादों तथा प्रदूषण नियंत्रण विभागों की अनदेखी करके लोग क्यों पटाखे फोड़ना जरूरी समझते हैं। कहीं न कहीं इसको लेकर राजनीति भी देखी जाती है। यह मसला गंभीर है और इसकी गंभीरता को महसूस किया जाना चाहिए। 

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