स्वच्छता में गंदगी

आज तक यह समझ नहीं आता कि स्वच्छता में गंदगी होती है या गंदगी में स्वच्छता। कमल कीचड़ में ही क्यों खिलता है, जबकि कीचड़ गंदगी का पर्याय माना जाता है। क्या गंदगी फैलाने से कोई पुण्य मिलता है? अगर मिलता है तो कैसे? अगर नहीं तो लोग पूजा की उपयोगी सामग्री बहते पानी में क्यों बहाते हैं? कहां तो सफाई नीयत की होनी चाहिए और कहां लोग नीयत का सफाया कर रहे हैं। आज तक समझ नहीं आता कि मोहल्ले, गाँव और शहर की गंदी गलियों और सड़कों से स्कूल जाने वाले बच्चे कक्षा में बैठ कर सफाई पर निबन्ध कैसे लिख पाते हैं। घरों के सामने और पिछवाड़े गन्दगी के ढेर पर बैठे होने के बावजूद लोग आश्रमों में जा कर, धर्म गुरुओं की सम्पत्ति की सफाई-सेवा तो करते हैं, पर मन की गन्दगी दैनिक जीवन में बिखरी क्यों नजऱ आती है। नए बने स्मार्ट सिटी का तो पता नहीं लेकिन कूबड़ वाले पुराने शहरों को स्मार्ट घोषित किए जाने के बावजूद आज भी आँखों के सामने घूरे के ढेर कैबरे करते दिखाई देते हैं। पिछले कई सालों से देश में मई के महीने में स्वच्छता अभियान के नाम पर दो सप्ताह की स्वच्छता पखवाड़ा चला कर इतिश्री की जा रही है। लेकिन स्वच्छता पखवाड़े के दौरान किसी झोंपड़-पट्टी, वाल्मीकि मोहल्ले या सुलभ शौचालय में सफ़ाई करने कोई नहीं जाता। पर, साफ-सुथरी सडक़ों पर ख़ास उन्हीं के लिए गिराए गए पत्तों पर झाड़ू फेरते अवश्य नजऱ आ जाते हैं। यूँ तो वीवीपीआई झाड़ू का जलवा स्वच्छता पखवाड़े के दौरान ही नजऱ आता है। देश में फैली गन्दगी तो पता नहीं कितनी साफ हुई, पर दिलो-दिमाग़ में फैल रही वैमनस्यता का कर्कट आए दिन घना होता जा रहा है। कहते हैं कमल कीचड़ में खिलता है तो क्या कीचड़ गन्दगी का पर्याय है। क्या कीचड़ को साफ करने से कमल मुरझा जाएगा? पर देश में सफ़ाई अभियान की सफलता का आकलन स्वच्छता पखवाड़े के दौरान किए जाने वाले पौधारोपण की सफलता दर से आसानी से लगाया जा सकता है।

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