हम घास हैं
हम पृथ्वी पर
उगे हैं, तृणों, हरी घासों की तरह,
औकात से थोड़ा ऊपर उठने पर
हमें चरकर
रौंद दिया जाता है।
हमारी औकात बताई जाती है,
कि तुम घास हो
घास की तरह ही रहो।
हां हम घास हैं,
साक्षी हैं इस दुनिया के,
सबसे पहले हमीं उगे थे,
तुम्हारी सभ्यता
बहुत बाद में उगी है,
हमीं को रौंदकर।
कितनी ही सभ्यताएं
मिट गईं हैं, हमारे रौंदने पर
हम तुम्हारे फर्स से गुम्बद तक उगेंगे
एक दिन।
तुम इतिहास हो जाओगे,
हम उगे हुए वर्तमान ही रहेंगे।
तुम्हारी सत्ताएं
मिट जायेंगी एक दिन,
हम नहीं मिटेंगे कभी।
हम घास हैं,
फिर उगेंगे हरियाकर।
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- सुरेश सिंह,पल्हान,रीवा (मप्र)।



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