निलंबन ही अनुशासन नहीं

लोकसभा अध्यक्ष ने राज्यसभा से विपक्ष के 19 सांसदों को सप्ताह भर के लिए निलंबित किया है। इससे पहले सोमवार को लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने कांग्रेस के चार सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित किया। बेशक कुल 23 चुने हुए सांसद अपनी आवाज़ उठाने से वंचित किए गए हैं, लेकिन उन्होंने भी सदन की कार्यवाही को लगातार बाधित कर ‘असंसदीय’ काम किया था। सांसद सदन से निलंबित किए गए, क्योंकि वे तख्तियां लहराते हुए अध्यक्ष या सभापति के आसन तक पहुंच गए थे। सदन में नारेबाजी, बैनरबाजी करना और किसी भी तरह की अराजकता फैलाना ‘असंसदीय’ है, यह निलंबित सांसद भी बखूबी जानते हैं। सदन में हंगामा बरपा कर महंगाई, बेरोजग़ारी और खाने-पीने की चीजों पर जीएसटी थोपने सरीखे मुद्दों पर बहस कैसे हो सकती है।
निलंबन की कार्रवाई भी अनुशासनवादी यूं साबित नहीं हो पाई है, क्योंकि हालात वही ढाक के तीन पात रहे हैं। सांसद 1963 से सदन की कार्यवाही से निलंबित किए जाते रहे हैं। 1989 में तो विपक्ष के 63 सांसदों को एक साथ निलंबित किया ग
या था। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद 2015 में भी विपक्ष के 25 सांसद निलंबित किए गए। पिछले बजट सत्र में सभापति ने विपक्ष के 12 सांसदों को सत्र भर के लिए सदन से बाहर कर दिया था। इन कार्रवाइयों के बावजूद सदन में न तो हंगामा शांत हुआ है और न ही संवेदनशील विषयों पर व्यापक बहसें हो पाई हैं। देश के करदाता नागरिकों का पैसा बर्बाद किया जाता रहा है और संसद की कुल बैठकें प्रतीकात्मक बनकर रह गई हैं। मौजूदा निलंबन पर विपक्ष के कुछ नेताओं की दलील है कि 23 सांसदों को उनकी आवाज़ उठाने से महरूम कर लोकतंत्र को ही निलंबित कर दिया गया है। लोकतंत्र इतना कमजोर नहीं है कि बार-बार निलंबित हो जाए अथवा समाप्ति के कगार पर आ जाए। ऐसा कहने वाले लोकतंत्र की ही देन हैं। सांसद बनने का मौका लोकतंत्र ने ही प्रदान किया है। दरअसल सवाल यह है कि यदि प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को महंगाई और जीएसटी पर सदन में चर्चा करनी थी, तो उसके सांसद ‘विजय चौक’ पर आंदोलित क्यों थे? वह समय तो संसद के भीतर मौजूद रहने का था, तो सडक़ पर कथित सत्याग्रह क्यों किया जा रहा था? क्या सोनिया गांधी किसी राजवंश की ‘राजमाता’ हैं, जो कानून और संविधान की परिधि से परे हैं? क्या सीबीआई, आयकर और प्रवर्तन निदेशालय सरीखी जांच एजेंसियां किसी विवादास्पद केस में उनकी जांच और पूछताछ नहीं कर सकतीं? दरअसल संसद में और सडक़ पर बोलने में बुनियादी अंतर है। संसद में तथ्यों पर और साक्ष्यों के साथ चर्चा में भाग लेना पड़ता है। वैसे भी बीते 7 माह में कांग्रेस के आलाकमानी नेता राहुल गांधी ने आंगनबाड़ी, कोरोना और जनजाति उत्पाद पर ही तीन सवाल उठाए हैं। महंगाई, बेरोजग़ारी पर कोई भी सवाल नहीं है। सिर्फ ट्विटर पर कुछ लिख देना ही संसद नहीं है। सवाल तो यह भी होगा कि यदि कांग्रेसी सांसद सदन में रहेंगे, तो वे अपनी सीट से ही आसन को बाध्य कर सकते हैं कि महंगाई पर चर्चा कराई जाए। फिर कार्य मंत्रणा समिति किसलिए है? मंगलवार को जीएसटी का विषय सूचीबद्ध था, लेकिन कांग्रेस के 50 से ज्यादा सांसद सडक़ पर थे, तो फिर मोदी सरकार ने बहस में अड़ंगा कैसे अड़ा दिया? व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिस दिन सदन की कार्यवाही नहीं चलेगी, उस दिन का भत्ता सांसद को नहीं मिलेगा। 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts