प्रकृति के प्रति हमारा अमानवीय व्यवहार

- एकता कानूनगो वक्षी
मेन रोड से सटी हुई पॉश गेटेड सोसाइटी में था हमारा यह फ्लैट जिसकी खिड़कियां सड़क और बाज़ार की ओर खुलती थीं। रात को सड़क रंगबिरंगी रोशनियां बिखेरती गाड़ियों की कतार से जगमग हो जाती थी,सड़क जैसे कभी सोती ही नही थी। वाहनों के विभिन्न आवाजों वाले हॉर्न पूरे समय कान को कम्पित करते रहते थे। मौके के इस फ्लैट की बहुत मांग बनी रहती थी। बहुत जल्दी मकान मालिक को किरायेदार मिल जाता था। जीवन की ज़रूरत का हर सामान यहां से सुलभ जो था। मकान मालिक बताते हैं जब उन्होंने खरीदा था यह फ्लैट तब यहां जंगल हुआ करता था। वीरान थी यह जगह। अब तो बहुत सी बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गयी हैं नही तो पहले आसपास के पहाड़ भी नज़र आते थे। इसके बावजूद सर्वसुविधा युक्त इस फ्लैट में कुछ ही दिनों में हमें घुटन महसूस होने लगी थी। प्रदूषण का गुबार हमारे जैसे पीछे पड़ा हुआ था।दरवाज़े खिड़की बंद कर एयर कंडीशनर और एयर प्यूरीफायर जैसे कृत्रिम साधनों की मदद से जीवन आगे बढ़ रहा था। जब सब्र का बाँध टूटा तो हम निकल गए उस घर की खोज में जो प्रदूषण से मुक्त हो। जहाँ से पहाड़ियां और प्रकृति का सौंदर्य नज़र आता हो।
जो हमारे सपनों के घर से कुछ कुछ मिलता जुलता हो । मेहनत का फल बहुत मीठा मिला। पुराने घर के सामने की गली में कुछ एक आधा किलोमीटर भीतर जाते ही एक छोटा सा अपार्टमेंट मिल गया। हम अचंभित थे कि शहर के बीचों बीच अब तक यह जगह कैसे बची रह गयी। इस अपार्टमेंट में बड़े आकार के कुछ गिनती के फ्लैट्स ही थे। दो बालकनी वाला यह खूबसूरत फ्लैट देखते ही मन को भा गया और कुछ समय के लिए हमारा यह नया आशियाना बन गया। इस फ्लैट की एक बालकनी से सामने पहाड़ी नज़र आती थी। सूर्यास्त का दृश्य बॉलकनी से बेहद मनोरम प्रतीत होता था। फ्लैट के सामने अभी तक कोई इमारत नही बनी थी इसलिए एक छोटा सा ज़मीन का बचा हुआ हिस्सा बेतरतीब छोटे से जंगल की तरह विकसित हो गया था, जिसे रहवासी उजाड़ कहते थे। यह उजाड़ ज़मीन बसेरा थी बहुत सारे जीव जंतुओं का। चूहा ,सांप ,नेवला, यहां तक कि शहरी पशु भी उस जगह पर देर तक रहना बेहद पसंद करते थे। रास्ता भटक कर एक दिन घोड़ा अचानक कहीं से आ गया और लंबा समय उस ने बड़ी आज़ादी से उस जगह की हरी दूब खाते हुए और रहवासियों द्वारा दिये गए भोजन पानी का सेवन करते हुए बिताए। कॉलोनी के कुत्ते- बिल्लियों की स्थायी आवास वह जगह रही।



उड़ कर कही दूर से आये बीज से बोर का एक पेड़ लग गया, जिस पर बहुत सारी गौरैया दिन भर खेलती,चहचहाती रहतीं। कई सारे कीट पतंगे, और उन किट पतंगों के सेवन के आकर्षण में आने वाली कई भिन्न प्रजाति की सुरीली चिड़ियाएं पूरे दिन वहां गाती गुनगुनाती रहतीं। जंगली वनस्पति व फूलों के रस के लिए रंगबिरंगी तितलियां, सनबर्ड दिन भर फुदकती रहती।किंगफ़िशर भी अक्सर नज़र आ जाता था । उस छोटी सी जमीन के अंत में और हमारी बालकनी के ठीक सामने बड़े बड़े पांच वृक्ष भी लगे हुए थे। उन पांच पेड़ो पर कई चिड़ियाओं ,बयाओ के घोंसले,चमगादड़ो के घर, चील का घोसला,कौओं का बसेरा उन पेड़ो पर था। साथ ही विभिन्न प्रजाति के उल्लू, हार्नबिल, शिकारा और भी अनगिनत पक्षियों का आना जाना उस पर बना ही रहता था। घर की महरी ने एक दिन बताया कि ये जो सामने पेड़ है ना! ये पांच विशाल पेड़ इन के पीछे राम नदी बहती है। कुछ साल पहले बाढ़ आई थी, उस मे मेरी बेटी बह गयी थी। बहुत मुश्किल से बचाया उसे। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा यह जानकर की घर के इतने करीब पहाड़ी और अब नदी भी है। दूसरे ही दिन हम नदी देखने गए। जैसे जैसे हम नदी की ओर बढ़ रहे थे रास्ता और सकरा होता गया और फिर हमें एक सघन बस्ती नज़र आयी, टीन की चद्दरें , मिट्टी ,सीमेंट की चद्दरों के एक दूसरे से सटे हुए घर और एक पतला सा गहरा नाला नजर आया।
आस- पास के लोगों से नदी के बारे में पूछा तो उन्होंने नाले की तरफ इशारा करते हुए बताया कि यही नदी है। मन मे कई विचार घुमड़ आए उस विशाल निर्मल कल कल बहती नदी को नाले में तब्दील होते देखकर । जीवन की कठिनाइयों मजबूरियों से उत्पन्न मनुष्य की स्थितियों व उसकी मानसिकता और प्रकृति की उदारता का बोध होने लगा। कैसे नदी ने अपनी जगह बाकी मनुष्यो को दे दी और मनुष्य ने उस पर और हक जमाते हुए उसे नाले में ही तब्दील कर दिया।
उसके बाद एक दिन जब बालकनी में बैठ कर सामने देखा तो वे पांच पेड़ मानो उस क्षेत्र के पांच बचे हुए रक्षक की तरह मुझ से मूकसंवाद कर रहे थे। जिस जगह वह अपार्टमेंट था वहां घना जंगल हुआ करता था। जब वहां रहते जीव जंतुओं का बसेरा नष्ट हुआ तो इन रक्षकों ने उन्हें अपने में शरण दी। अब चारो तरह इंसानी बस्ती है।
मनुष्य के विकास का नतीजा है कि जंगल अब छोटे क्षेत्र में सीमित होता जा रहा है। उसकी बची हुई छोटी सी प्राकृतिक नैसर्गिक खूबसूरती को उजाड़, बेतरतीब जंगल की संज्ञा दी जाती है। नदी को नाले में परिवर्तित कर दिया गया है।उदार प्रकृति से लेते समय हम ज़रा भी संकोची नहीं रहे । मन आत्मग्लानि से भर गया।

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