सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

 कल महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत परीक्षण के लिए दी हरी झंडी

 नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में गुरुवार को होने वाले फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। फ्लोर टेस्ट का परिणाम सुप्रीम कोर्ट के अंतिम परिणाम पर निर्भर करेगा। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम इस मामले के गुण-दोषों के आधार पर 11 जुलाई को सुनवाई करेंगे।

सुनवाई के दौरान शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि फ्लोर टेस्ट बहुमत जानने के लिए होता है। इसमें इस बात की उपेक्षा नहीं कर सकते कि कौन वोट डालने के योग्य है और कौन नहीं। उन्होंने कहा कि स्पीकर के फैसले से पहले वोटिंग नहीं होनी चाहिए। उनके फैसले के बाद सदन सदस्यों की संख्या बदलेगी। सिंघवी ने कहा कि कोर्ट ने अयोग्यता के मसले पर 11 जुलाई तक के लिए सुनवाई टाली है। उससे पहले फ्लोर टेस्ट गलत है। तब कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि फ्लोर टेस्ट कब करवा सकते हैं, इसे लेकर क्या कोई नियम है। तब सिंघवी ने कहा कि आमतौर पर 2 फ्लोर टेस्ट में 6 महीने का अंतर होता है। इसलिए, अभी फ्लोर टेस्ट कुछ दिनों के लिए टाल देना चाहिए।

सिंघवी ने कहा कि 21 जून को ही ये विधायक अयोग्य हो चुके हैं। तब कोर्ट ने पूछा कि अगर स्पीकर ने अभी तक यही फैसला ले लिया होता तो स्थिति अलग होती। डिप्टी स्पीकर के पास बहुमत होना खुद ही विवादित है। इसलिए, अयोग्यता के मसले पर सुनवाई टाली गई है। तब सिंघवी ने कहा कि जो लोग 21 जून से अयोग्य हो चुके हैं, उनके वोट के आधार पर सरकार का सत्ता से बाहर होना गलत है। सिंघवी ने कहा कि इन लोगों को वोट डालने देना लोकतंत्र की जड़ों को काटना होगा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट के लिए मंत्रिमंडल से सलाह नहीं ली। जल्दबाजी में निर्णय लिया है। जब कोर्ट ने सुनवाई 11 जुलाई के लिए टाली तो इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था।

सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल ने 34 विधायकों की चिट्ठी की पुष्टि की कोशिश नहीं की। विपक्ष के नेता राज्यपाल से मिले, फिर उन्होंने फ्लोर टेस्ट के लिए कह दिया। तब कोर्ट ने कहा कि लेकिन राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल कैसे करें, यह कैसे तय किया जा सकता है। बहुमत तो सिर्फ फ्लोर पर ही परखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल को लगता है कि सरकार ने बहुमत खो दिया है और कुछ विधायकों को स्पीकर के जरिए अयोग्य करार देने की कोशिश कर रही है, तो राज्यपाल को क्या करना चाहिए। तब सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल बीमार थे। अस्पताल से बाहर आने के दो दिन के भीतर विपक्ष के नेता से मिले और फ्लोर टेस्ट का फैसला ले लिया। सिंघवी ने कहा कि जिन लोगों ने पाला बदल लिया, वह लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। आसमान नहीं टूट पड़ेगा, अगर कल फ्लोर टेस्ट न हुआ तो। तब कोर्ट ने पूछा कि क्या यह लोग विपक्ष की सरकार बनवाना चाहते हैं। तब सिंघवी ने कहा कि जी, चिट्ठी में उन्होंने यही लिखा है।

सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल को धारा 361 के तहत अदालती कार्यवाही से अलग रहने की छूट दी गई है, लेकिन यह कोर्ट को राज्यपाल के आदेश की समीक्षा करने से नहीं रोकता है। उन्होंने कहा कि स्पीकर को विधायकों की अयोग्यता पर निर्णय लेने से नहीं रोका जाना चाहिए। यह निर्णय होने तक फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड या मध्यप्रदेश के मामले में भी कोर्ट ने स्पीकर को विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने से नहीं रोका था। यहां भी फैसला लेने देना चाहिए। सिंघवी ने कहा कि अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो दूसरे पक्ष का विधायक व्हिप नहीं हो सकता। सुनील प्रभु को स्पीकर ने व्हिप के रूप में मान्यता दी है। सिंघवी ने कहा कि स्पीकर को फैसला लेने दीजिए या फिर अभी फ्लोर टेस्ट भी टाल दीजिए।

सुनवाई के दौरान एकनाथ शिंदे की ओर से वकील नीरज किशन कौल ने कहा कि जब स्पीकर के खिलाफ खुद अविश्वास प्रस्ताव हो तो वह विधायकों की अयोग्यता पर सुनवाई कर ही नहीं सकते। उन्होंने कहा कि फ्लोर टेस्ट कभी भी टाला नहीं जाना चाहिए। यही हॉर्स ट्रेडिंग से बचने का सबसे सही तरीका होता है। कौल ने कहा कि हमारा कहना है कि अयोग्यता का मसला लंबित होने के चलते अभी फ्लोर टेस्ट नहीं टाला जा सकता। कौल ने नाबाम राबिया फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक स्पीकर को हटाने पर फैसला नहीं हो जाता तब तक अयोग्यता पर फैसला नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि हम जानते हैं कि राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट को कहने से पहले मंत्रिमंडल से सलाह लेने की जरूरत नहीं, लेकिन मसला यह भी उठाया गया है कि कुछ लोगों को वोट डालने का अधिकार नहीं है। तब कौल ने कहा कि अयोग्यता कार्रवाई लंबित होने से फ्लोर टेस्ट नहीं रोक सकते हैं। अयोग्यता साबित होगी तो फिर टेस्ट हो जाएगा। उन्होंने कहा कि न सिर्फ सरकार अल्पमत में है, लेकिन सत्ता में बैठा पक्ष पार्टी के अंदर भी अल्पमत में है। हमने यही देखा है कि लोग फ्लोर टेस्ट जल्दी करवाने का अनुरोध करते हैं, लेकिन यह सरकार उसे टालने की मांग कर रही है।

कौल ने कहा कि यह कैसी दलील है कि राज्यपाल कोरोना से उबरकर अभी दो दिन पहले ही अस्पताल से आए हैं। क्या कोरोना से उबरा व्यक्ति अपना संवैधानिक दायित्व पूरा नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि इसमें शक नहीं कि कोर्ट राज्यपाल के आदेश की समीक्षा कर सकता है, लेकिन क्या इस मामले में राज्यपाल का फैसला सचमुच इतना गलत है कि उसमें दखल दिया जाए। कौल ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल के फैसले की दलील दी जा रही है, लेकिन मीडिया सूचना का एक अहम साधन है। कोर्ट ने पूछा कि कितने विधायक असंतुष्ट खेमे में हैं। तब कौल ने कहा कि 55 विधायकों में से 39। इसी वजह से फ्लोर टेस्ट की जरूरत है। कोर्ट ने पूछा कि कितनों को अयोग्यता का नोटिस है। तब कौल ने कहा कि 16 विधायकों को। कौल ने कहा कि असंतुष्ट विधायक शिवसेना नहीं छोड़ रहे हैं। हम ही शिवसेना हैं।

वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि कोर्ट जब भी देर तक बैठी है तो फ्लोर टेस्ट के आदेश के लिए, लेकिन ये पहली बार है कि वो फ्लोर टेस्ट रोकने की याचिका पर सुनवाई के लिए बैठी है। उनका ये कहना कि राज्यपाल ने बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के फैसला किया है, लेकिन फ्लोर टेस्ट के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह की जरूरत नहीं है। फ्लोर टेस्ट करना ही बहुमत को साबित करने का नैसर्गिक तरीका है। उन्होंने कहा कि डिप्टी स्पीकर खुद बहुमत खो चुके हैं। वैसे किसी भी सरकार के लिए फ्लोर टेस्ट में जाना ही सही होता है। बिना बहुमत के शासन गलत है।

महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर राज्यपाल को अविश्वास प्रस्ताव मिलता है तो उसका निर्धारण फ्लोर टेस्ट से होगा। उन्होंने कहा कि स्पीकर यह तय नहीं कर सकते कि प्रस्ताव पर वोट देने वाले कौन-कौन लोग होंगे। सवाल ये है कि क्या स्पीकर या डिप्टी स्पीकर के पद का दुरुपयोग हो सकता है तो उसका जवाब है कि हां। उन्होंने कहा कि नबाम राबिया फैसला इस वजह से दिया गया था कि स्पीकर के पद का दुरुपयोग हो सकता है। मेहता ने 39 विधायकों की सुरक्षा को लेकर मीडिया रिपोर्ट का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि डिप्टी स्पीकर ने अयोग्यता नोटिस का जवाब दो दिन में देने को कहा और अब वो पूछ रहे हैं कि फ्लोर टेस्ट के लिए 24 घंटे का समय क्यों।

मेहता ने कहा कि राज्यपाल को कई माध्यमों से यह सूचना मिली कि 39 विधायकों ने सरकार का साथ छोड़ दिया है। उन विधायकों को जिस तरह की धमकी दी जा रही थी, यह भी राज्यपाल की जानकारी में था। मेहता ने कहा कि एसे बयान दिए गए कि विधायकों की लाश दिल्ली आएगी। तब कोर्ट ने कहा कि यह भावुकता में दिया बयान हो सकता है। तब मेहता ने कहा कि हिंसा की घटनाओं के बाद उसी व्यक्ति ने यह भी कहा कि यह सिर्फ झांकी है, आगे देखिए। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को इस बात की भी आशंका थी कि गैरकानूनी तरीके से सदन में वोट जुटाने का प्रयास हो सकता है। उन्होंने जल्द फ्लोर टेस्ट करवाना सही समझा।

सिंघवी ने अपना जवाब देते हुए कहा कि अगर बायां हाथ दसवीं अनुसूची से बांध दिया जाए और दायें को फ्लोर टेस्ट के लिए कहा जाए तो ये लोकतंत्र के लिए दलील नहीं है। उन्होंने कहा कि नाबाम राबिया मामला फ्लोर टेस्ट के लिए नहीं है, लेकिन इस मामले में उसी की दलील दी जा रही है। वो लगातार ये दलील दे रहे हैं कि स्पीकर संदिग्ध हैं और राज्यपाल पवित्र हैं। ऐसा नहीं हो सकता है कि स्पीकर को राजनीतिक कहा जाए पर क्या राज्यपाल निष्पक्ष होते हैं। राज्यपाल देवदूत नहीं, इंसान ही होते हैं। ये वही राज्यपाल हैं जिन्होंने लंबे अरसे तक विधानपरिषद में सदस्यों का मनोनयन लटकाए रखा। अब बिना तथ्यों की पुष्टि किए फ्लोर टेस्ट का आदेश दे दिया। फ्लोर टेस्ट का आदेश देते समय राज्यपाल ने एक वाक्य भी नहीं कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। क्या राज्यपाल ने तथ्यों का वेरिफिकेशन किया। सिंघवी ने कहा कि या तो फ्लोर टेस्ट एक हफ्ते के लिए टाला जाए या अयोग्यता के मामले पर पहले फैसला करने का आदेश दिया जाए। तभी संतुलन आएगा।

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