योग दिवस की सार्थकता

- डा. जगदीश सिंह दीक्षित
आज योग पूरे विश्व में अपनी उपयोगिता और सार्थकता का डन्का बजा रहा है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों से इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है।इसी का प्रतिफल रहा है कि 21 जून को अन्तर्राष्टीय  योग दिवस के  रूप में इसे मनाया जाने लगा है। लेकिन केवल एक दिन योग दिवस मना लेने और कुछ दिन बच्चों को योगाभ्यास करा देने से इसका कोई सार्थक लाभ नहीं मिलने वाला है। महर्षि पातंजलि जी ने इस पर विशेष रूप से कार्य किया।इसी को लेकर श्री श्री रविशंकर,बाबा रामदेव तथा अन्य महर्षियों और योगाचार्यों ने पिछले कुछ दसकों में योग को पूरे विश्व स्तर पर पहुंचाने के लिये अथक प्रयास किया और आज भी कर रहे हैं।        इसके लाभ को देखते हुये प्रत्येक विश्वविद्यालय अपने-अपने यहाँ अलग से विषय की मान्यता देते हुए पाठ्यक्रम का संचालन कर रहे हैं। प्राथमिक से माध्यमिक स्तर पर भी योग को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रयास सभी राज्य सरकारें और सभी बोर्ड का रहे हैं।                    
ऐसा क्यों न किया जाना चाहिए। योग से पूरे जीवन की दिनचर्या और स्वास्थ्य पर सार्थक प्रभाव बिना।हर्रे फिटकरी के पड़ रहा है।यौगिक क्रियाओं के द्वारा पूरा मानसिक और शारीरिक इलाज मुफ्त में हो जा रहा है। राज्य सरकारें अभी तो बड़े शहरों में योग और फिटनेस सेन्टर स्थापित कर रही हैं। लोगबाग अपने -अपने घरों में ही कुछ उपकरण मंगाकर जिमखाना बना लिया है। जगह -जगह प्राइवेट स्तर पर भी लोग जिमखाना खोलकर खूब पैसा कमा रहे हैं।                                        
लेकिन सवाल यह उठता है कि यह सब कुछ इतना क्यों करना पड़ रहा है। जब हमलोग प्राथमिक से लेकर माध्यमिक कक्षाओं में पढते थे तब वर्ष भर सुबह प्रार्थना होती थी।सायं पीटी और योग होता था। जिन पीटी(कसरत)को करते थे उसी को लेजिम और डम्बल से दुहराते थे। बाँस की अंगुली इतना छड़ी से जो अपने टीका के बराबर होती थी उससे जो हमारे पीटी के अध्यापक  होते थे लाठी भाजना सिखाते थे। इस सबसे पूरा प्रतिदिन शारीरिक व्यायाम हो जाता था जिसे आगे भी लोग जीवन भर करके स्वस्थ रहते थे।
इतना ही नहीं प्राथमिक स्तर तक कई यौगिक क्रियाओं को भी हमलोगों को सिखाया जाता था। जैसे-गरुण आसन, पद्म आसन, तौल आसन, कक्षप आसन, ताड़ासन, बिलारी छनना, शीर्षासन, भुजन्गासन, कपाल आसन, सिंहासन, धनुष आसन, सबसे कठिन एक आसन हमलोग करते थे -वह था पैर पीछे और दोनों हाथ आगे करके पूरा चक्कर लगाकर उलट जाते थे और पूरा पेट ऊपर करके तन जाते थे। आगे बोरा दौड़, जलेबी या अमरूद दौड़ तो होती ही थी।इसके अलावा लम्बी और ऊँची कूद।
आगे चलकर माध्यमिक स्तर पर भाला फेंक, हैमर थ्रो, शाटपुट, डिसकस थ्रो, पोल वाल्ट, झण्डी दौड़, बाधा दौड़ यह सब खेल तो होते ही थे। हाकी, फुटबाल, बास्केट बाल, बालीबाल भी होते थे। जिन बच्चों की जिन खेलों में रुचि रहती थी वे उन खेलों में भाग लेते थे। इस प्रकार पूरे जीवन काल के लिए अध्ययन के दौरान ही स्वस्थ रहने का ज्ञान प्राप्त हो जाता था।
अब आप कहेंगे कि जो लोग पढने नहीं जाते थे तो उनका  इस सबका ज्ञान कैसे होता था। अधिकांश लोगबाग जो पढने नहीं गये उनमें से अधिकतर लोग खेती के काम में लगते थे। हल जोतना, डांड़-कोन करना यह सब करते थे। इनका पूरा शारीरिक अभ्यास कहें या श्रम इसी में हो जाता था। इसलिये वे स्वस्थ भी रहते थे और शतकवीर भी होते थे। गाँवों में खेलकूद के बड़े-बड़े मैदान होते थे जिसमें सायं जाकर हापड़ खेलना, दौड़ लगाना, लम्बी और ऊँची कूद लगाना। नदी किनारे किसी छायादार पेड़ के नीचे या फिर पोखरे के भीटे पर अखाड़ा खोदा रहता था उसमें कुश्ती लड़ते थे। इनअखाड़ों पर अलग-अलग वजन के गदा और जोडियाँ रहती थीं जिसे लोग भाजते थे। पेड़ की डालियों में कोई गमछा बांध दिया जाता था। कुछ खिलाड़ी फर्री मारते हुए उसे पैर से छूते थे। अब यह सब कुछ विलुप्त हो रहा है। इसी लिये अब योग के महत्व को समझाने का सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर प्रयास किया जा रहा है।                                                 मेरा अपना मत है कि यदि जो आज विद्यालयों में गरमी की छुट्टियाँ हो जाने के बाद या विश्वविद्यालयों में चल रही परीक्षाओं के दौरान बच्चों से योगाभ्यास कराया जा रहा है, जिसमें पूरा सरकारी अमला इस भयंकर गरमी और लू के थपेडों में कदमताल कर रहा है। जिसमें प्राथमिक के शिक्षकों पर अधिकांश जनपदों के खण्ड शिक्षाधिकारी और बेसिक शिक्षा अधिकारी धौंस जमाकर अपना-अपना रुतबा जमाने में लगे हुये हैं। यह सब कुछ तब नहीं करना पड़ता जब वे जिनका मैंने ऊपर वर्णन किया है। ऊपर किये गये वर्णनों को अब विद्यालयों में वर्ष भर चलाना चाहिए। तभी योग के महत्व को हम जन-जन तक पहुँचाने में सफल हो सकते हैं।
सरकारी तंत्र गाँव से लेकर हर छोटे-बड़े नगर और शहरों तक खेलकूद के मैदानों का निर्माण कराकर उनमें पूरा जिमखाना का निर्माण कराये। गाँवों में युवक और महिला मंडल का गठन कराकर उनको इसकी जिम्मेदारी देनी चाहिए। इनमें से कुछ लोगों को नि:शुल्क प्रशिक्षण की भी व्यवस्था करनी चाहिए। इस प्रकार आगे चलकर योग जन-जन तक पहुँचाने में सफलता मिल सकती है।

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