पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना जरूरी

अब तक के शोधों से यह सामने आ चुका है कि धरती का पारिस्थितिकी तंत्र बेहद खराब हो चुका है। बड़े पैमाने पर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, शिकार और वृक्षों की कटाई जैसी गतिविधियों से धरती पर बड़े बदलाव हो रहे हैं। प्रदूषित वातावरण और प्रकृति के बदलते मिजाज के कारण जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। कई प्रजातियां तेजी से लुप्त होती जा रही हैं। वनस्पति और जीव-जंतु ही धरती पर बेहतर और जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करते हैं। वन्य जीव चूंकि हमारे मित्र भी हैं, इसलिए उनका संरक्षण किया जाना बेहद जरूरी है। शोधकर्ताओं का मानना है कि धरती के ऐसे बीस फीसद हिस्से की जैव विविधता को बचाया जा सकता है जहां अभी पांच या उससे कम बड़े जानवर ही गायब हुए हैं। लेकिन इसके लिए मानव प्रभाव से अछूते क्षेत्रों में कुछ प्रजातियों की बसावट बढ़ानी होगी, ताकि पारिस्थितिकीय तंत्र में असंतुलन पैदा न हो। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही गर्मी से भी जैव विविधता खतरे में पड़ी है। करीब नौ सौ जैव प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और सैंतीस हजार से ज्यादा प्रजातियों पर विलुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। यदि जैव विविधता पर संकट इसी प्रकार मंडराता रहा तो धरती पर से प्राणी जगत का खात्मा होने में सैकड़ों साल नहीं लगने वाले। दुनिया के सबसे वजनदार पक्षी के रूप में जाने जाते रहे एलिफेंट बर्ड का अस्तित्व खत्म हो चुका है। इसी प्रकार एशिया तथा यूरोप में मिलने वाले रोएंदार गैंडे की प्रजाति भी अब इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन चुकी है। द्वीपीय देशों में पाए जाने वाले डोडो पक्षी का अस्तित्व मिटने के बाद अब कुछ खास प्रजाति के पौधों के अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है। विकास के नाम पर यदि वनों की कटाई जारी रही और जीव-जंतुओं और पक्षियों से उनके आवास छीने जाते रहे तो ये प्रजातियां धरती से एक-एक कर लुप्त होती जाएंगी और भविष्य में इससे पैदा होने वाली भयावह समस्याओं और खतरों का सामना समस्त मानव जाति को ही करना होगा।

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