अब ई-संजीवनी ओपीडी को मिलेगी रफ्तार


सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों को मिले लैपटॉप

गाजियाबाद, 25 मई, 2022। जनपद के दूर-दराज के क्षेत्रों में बनाए गए हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स पर तैनात 78 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) को बुधवार को लैपटॉप  दिये गये। कलेक्ट्रेट के महात्मा गांधी सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान स्थानीय सांसद और भारत सरकार में राज्यमंत्री जनरल डा. वीके सिंह ने अपने कर कमलों से लैपटॉप वितरित किए। इस मौके पर उन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों से सरकारी योजनाओं का अक्षरशः पालन कर अंतिम छोर वाले लाभार्थी तक उसका हक पहुंचाते हुए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की अपेक्षा की। सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों से उन्होंने कहा है कि गर्भवती, बच्चों और बुजुर्गों को समय से चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराएं। इस मौके पर जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह, मुख्य विकास अधिकारी विक्रमादित्य सिंह मलिक, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. भवतोष शंखधर, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आरसीएच) डा. विश्राम सिंह आदि मौजूद रहे। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (प्रशासन) डा. सुनील त्यागी ने कार्यक्रम का संचालन किया।  

बता दें कि जनपद में वर्तमान में कुल 103 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी तैनात हैं। इनमें से 60 की नियुक्ति मार्च, 2020 के दौरान और पांच अन्य की नियुक्ति इसी माह हुई है। शासन ने गांव-गांव तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बनाने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स पर सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों की नियुक्ति की है। दरअसल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और दूर-दराज के क्षेत्रों में यह सेंटर एक कड़ी का काम करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं और इस काम को यह सेंटर बखूबी अंजाम भी दे रहे हैं। एक वर्ष के दौरान सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों के जरिए ही जनपद के 31 हजार से अधिक लोग ई-संजीवनी ओपीडी का लाभ ले सके हैं। नवनियुक्त सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों को लैपटॉप प्राप्त होने से ई-संजीवनी ओपीडी को और गति मिलेगी। 

ई-संजीवनी ओपीडी के जरिए विशेषज्ञ परामर्श लेने के लिए केवल हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर तक जाना पड़ेगा। सेंटर में तैनात सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी मरीज को सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात चिकित्सक से वी‌डियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ऑनलाइन परामर्श उपलब्ध कराते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर यदि समस्या का निस्तारण नहीं होता तो फिर जिला अस्पताल और फिर मेडिकल कॉलेज में बैठे विशेषज्ञों के पास चिकित्सकीय परामर्श के लिए कॉल ट्रांसफर की जाती है।

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