प्रेम और मानवता का संदेश देता है रमजान

- शानू सैफी
खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना माह-ए-रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का महीना है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम-भाइचारे और मानवता का संदेश भी देता है। इस पाक-पवित्र महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह मुआफ करता है। इस पवित्र महीने में दोजख के दरवाजे बंद कर जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख प्यास को समझने का महीना है।
हिदायत मिलती है कि रोजे के बाद झूठ बोलने, किसी पर बुरी नजर डालने, किसी की बुराई करने और हर छोटी से छोटी बुराई से दूर रहना अनिवार्य है। रोजा रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना ही नहीं है बल्कि आत्म-संयम, नियंत्रण, अल्लाह के प्रति अकीदत, सही राह पर चलने का संकल्प है। साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद का मूल्यांकन कर खुद को सुधारने का मौका भी देता है। इस मुकद्दस माह के पहले 10 दिनों में अल्लाह रोजेदारों पर रहमतों की बारिश करता है। दूसरे 10 दिनों में गुनाह माफ करता है। तीसरे 10 दिन दोजख की आग से निजात पाने की साधना को समर्पित किए गए हैं।



रमजान माह एक दूसरे के हमदर्दी का भी महीना है। सब्र करने का महीना है, त्याग का महीना है। अल्लाह ने अपने बंदों को बुराइयों को त्याग कर अच्छे मार्ग पर चलने का यह सुनहरा मौका प्रदान करता है। रोजा आत्मा की शुद्धता का सबसे उत्तम साधन है। इस्लाम नेक इंसान बनने की नसीहत देता है और रमजान में नेक बनने का मौका मिलता है। गरीबों की मदद करने से अल्लाह खुश होते हैं। दुआ करें कि सभी लोग आपसी भाइचारे के साथ रहें।
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौंवा महीना रमज़ान का होता है। ये महीना सब्र और गमख्वारी का महीना है। दुनिया भर में इस महीने में कुरान शरीफ सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है। रमजान का मुबारक महीना नेक बनने की हिदायत देता है। वह सही रास्ते पर चलने की राह दिखाता है।
रमज़ान में शब-ए-कद्र की रात विशेष महत्वपूर्ण होती हैं। रमज़ान की 21, 23, 25, 27, 29 वीं रात शब-ए-कद्र की रात होती है। इन ताक रातों में अल्लाह की रहमत ख़ास तौर से बरसती है। यह रात एक हज़ार रातों से बेहतर होती है। इसलिए इन रातों को ख़ास इबादत होती है।
रमज़ान को क़ुरआन का भी महीना कहा जाता है। रमज़ान की रात में एक विशेष नमाज़ होती है जिसे तरावीह कहते हैं यह सबसे लम्बी बीस रकअत के दौरान पढ़ी जाती है।
रमज़ान के महीने में केवल बीमार, बूढ़े  या सफर कर रहे लोगों को ही रोज़े रखने से छूट दी गई हैं। साथ ही गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं को भी रोज़ें रखने या ना रखने की आजादी दी गई है।
रमज़ान के महीने में जकात अदा करना बेहद जरूरी माना गया है। “ज़कात” उस धन को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर अल्लाह या धर्म की राह में खर्च किया जाए। इस धन का प्रयोग समाज के गरीब तबके के कल्याण और सेवा के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जक़ात रमज़ान के महीने में आने वाली ईद से पहले दे देनी चाहिए ताकि गरीबों तक यह पहुंच सके और वह भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें।
- फार्मासिस्ट, जाकिर कॉलोनी, हापुड़ रोड (मेरठ)

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