परमाणु अप्रसार संधिः पुनर्विचार की जरूरत-
संजीव ठाकुर
वैश्विक शांति सद्भावना और सौहार्द्र के लिए वैश्विक देशों ने एक मत हो कर परमाणु अप्रसार संधि पर 1970 में लगभग विश्व के सारे देशों ने अपनी मुहर लगाई थी। विश्व के 191 देशों ने अपनी सहमति जताकर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए थे। यह इस परमाणु संधि का मूल आदर्श यही था कि मानव जाति के लिए हर संभव परमाणु हथियारों और इस खतरनाक तकनीक के प्रचार प्रसार को रोकना था, जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं थे वह भी इस संधि में शामिल हो गए थे पर परमाणु हथियार संपन्न देश भी इस बात से सहमत हैं कि परमाणु हथियार बनाने एवं इसके उपयोग पर प्रभावी नियंत्रण लगे।
 द्वितीय युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु, परमाणु बमों का भयानक परिणाम जापान में पूरी दुनिया के लोग देख चुके थे, अनुभव कर चुके थे। जापान इसके दुष्परिणाम अभी तक झेल रहा है। परमाणु हथियारों का उपयोग मानव जाति के खिलाफ ना किया जाए इसके लिए परमाणु अप्रसार संधि की कवायत यूनाइटेड नेशंस ऑर्गेनाइजेशन की गई थी। अब जब संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्सकी से भेंट कर रूस यूक्रेन युद्ध को रोकने की मध्यस्थता करने रूस के दौरे पर जाएंगे, पर संयुक्त राष्ट्र संघ शांति स्थापना के देश में कितना सफल होगा यह तो वक्त ही बताएगा। 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद अनेक देश परमाणु हथियार संपन्न बन चुके हैं। परमाणु तथा हाइड्रोजन बमों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है।
 उल्लेखनीय है कि इन संधियों को युद्ध से बचने और शांति स्थापित करने के प्रयास के लिए वैश्विक स्तर पर निर्मित किया गया था। अब रूस तथा यूक्रेन युद्ध में उसकी कहीं भी कोई भूमिका दिखाई नहीं देती, सभी संस्थाएं निष्क्रिय प्रतीत होती हैं। कमजोर और छोटे देश यूक्रेन पर पिछले 60 दिनों से रूस लगातार आक्रमण कर उसके शहरों को तबाह कर रहा है, संयुक्त राष्ट्र संघ सहित विश्व के सारे देश हाथ में हाथ धरे बैठे इस भीषण युद्ध को सिर्फ देख रहे हैं। इसे रोकने की किसी ने पहल तक नहीं की है।
ऐसे में इन संधियों की प्रासंगिकता भी लगभग शून्य हो चुकी है। यूक्रेन को अपनी उस बड़ी गलती का एहसास हो रहा है जो 1994 में उसने बुडापेस्ट समझौते के तहत परमाणु हथियार नहीं बनाने के लिए वचनबद्ध होकर हस्ताक्षर करके की थी। अमेरिका यूरोपीय देश तथा रूस ने यूक्रेन को परमाणु हथियारों से दूर रखने की नीति पर काम किया था, जिसके फलस्वरूप यूक्रेन ने अपने पास मौजूद तमाम परमाणु हथियारों को इस बुढापेस्ट समझौते के तहत 1996 में नष्ट कर दिए थे। यूक्रेन रूस तथा अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव में 1996 में जेनेवा सम्मेलन में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि के तहत हस्ताक्षर किए थे।



भारत ने इस परमाणु संधि पर हस्ताक्षर करने से साफ इंकार कर दिया था और भारत सरकार की देखा देखी पाकिस्तान ने भी हस्ताक्षर नहीं किए थे। उस समय की यह नीति अत्यंत भेदभाव पूर्ण थी जिसके परिणाम अब साफ नजर आ रहे हैं। यूक्रेन के पास यदि आज परमाणु हथियार होते तो रूस इस तरह उस पर ताबड़तोड़ हमले न करता और रूस ने इस युद्ध में परमाणु हथियारों की उपयोग की धमकी तक दे डाली है यह अलग मुद्दा है कि रूस परमाणु हथियारों का कब और कैसे इस्तेमाल करेगा।
भारत ने पहला परमाणु परीक्षण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1974 में राजस्थान के पोखरण में कराया था और तब से दुनिया ने समझ लिया है कि भारत भी एक परमाणु संपन्न देश बन चुका है एवं इस दिशा में 1998 में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में फिर से परमाणु परीक्षण कर इस पर मुहर लगा दी गई थी । भारत ने परमाणु हथियार बनाने के साथ-साथ प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने एक नीति विश्व के सामने स्पष्ट कर दी थी कि परमाणु हथियार केवल निरोध के लिए है और भारत केवल प्रतिशोध की नीति को अपनायगा इसका साफ साफ यह मतलब है कि भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा और यदि कोई देश उस पर हमला करता है तो वह परमाणु हथियारों का उपयोग करने से पीछे नहीं हटेगा।
परमाणु हथियारों के उपयोग का खतरा अभी भी वैश्विक जगत में छाया हुआ है क्योंकि परमाणु अप्रसार संधि में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, पाकिस्तान, इसराइल और उत्तर कोरिया ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है। फलस्वरूप परमाणु हथियारों के उपयोग की आशंका बनी हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ एक कमजोर मध्यस्थ की तरह सबकी तरफ ताक रहा है।
 वर्तमान समय में अमेरिका के पास 6800, फ्रांस के पास 300 चीन के पास 260 ब्रिटेन के पास 215 पाकिस्तान के पास 140 और भारत के पास 110 इजराइल के पास 80 और उत्तर कोरिया के पास 10 परमाणु हथियार है। एक भी देश यदि परमाणु हथियार इस्तेमाल करता है तो पूरा विश्व और धरती तहस-नहस होने की दिशा में अग्रसर हो सकती है। विश्व बहुत गहरे संकट में है रूस यूक्रेन युद्ध यदि समाप्त नहीं हुआ तो विश्व युद्ध की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है
(चिंतक, लेखक, रायपुर)

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