महंगाई और बेरोजगारी पर गंभीर चिंतन जरूरी

- आचार्य श्रीकांत शास्त्री
जिस प्रकार से देश में जनसंख्या की वृद्धि हो रही है उससे महंगाई का बढ़ना स्वाभाविक है, जिसको सरकार अलग-अलग प्रकार से दर्शा रही है, निरंतर जनसंख्या की भारी वृद्धि को बढ़ती हुई समस्या तो बता रही है, लेकिन महंगाई को अपने काबू में बता रही है, जो जनता की समझ से बाहर है। स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि जनसंख्या की भारी वृद्धि ही महंगाई एवं बेरोजगारी सबसे बड़ा कारण है।
कोरोना काल के शुरुआती दौर में ही देश के महानगरों एवं बड़े शहरों और कस्बों से काफी लोग अपने अपने गांव चले गए हैं, वे लोग अभी तक अपने स्थान पर पहुंच नहीं सके हैं, जिसके कारण भी महंगाई एवं बेरोजगारी की समस्या बढ़ी है। वर्तमान परिदृश्य में जिस प्रकार से नई बीमारी कोरोना ने एक दूसरे से दूर किया जिसकी वजह से तमाम समस्याएं उत्पन्न हुई जिसमें सबसे प्रमुख रूप महंगाई ने अपना स्थान बना लिया, जिसके थपेड़े से आम जन बेहाल हो गया और उनका जीवन जीना कठिन हो गया, जिसकी वजह से शहर को छोड़कर गांव भाग आए और आज उसी की वजह से भारी बेरोजगारी दिखाई पड़ रही है।



 इधर जनसंख्या की भारी वृद्धि दोनों अपने अपने मिसाल बनाने में आगे बढ़ रहे हैं जो देश एवं सरकार के सामने चुनौती के रूप में खड़े हैं, लेकिन सरकार जनसंख्या वृद्धि को समस्या मान रही है, लेकिन महंगाई को पिछली सरकारों का हवाला देकर वर्तमान को महंगाई मुक्त बता कर अपनी पीठ थपथपा रही है जो न तो नीतिगत सही दिखाई पड़ रहा है और ना ही दूरगामी भविष्य उज्जवल दिखाई पड़ रहा है। बल्कि वर्तमान की इस कमरतोड़ महंगाई से जनता बिलबिला रही है।
जहां एक तरफ जनसंख्या की भारी वृद्धि विस्फोटक की स्थिति पैदा कर रही है वहीं दूसरी ओर बेरोजगारी भी भारी पहाड़ की तरह है जो बहुत ही चिंता का विषय है और बहुत ही खतरनाक है जिसके कारण ही महंगाई भी अपना मुंह खोले खड़ी है। अब इसको काबू में करना टेढ़ी खीर सा दिखाई पड़ रहा है।
 इसका प्रभाव इतना जबरदस्त है कि लोगों की जमी जमाई व्यवस्था भी उनके हाथ से निकलती जा रही है, नए अवसर पाना तो छोड़ो हर संस्थानों में नौकरियों का छंटनी की जा रही है। जो कंपनियां कोरोना काल के पूर्व बंद है वो तो बंद ही है, लेकिन जो करोना काल में बंद हुई वो भी ज्यादातर अभी तक नहीं खुल पाई हैं, जिसके कारण भी महंगाई एवं बेरोजगारी की समस्या दोनों समान रूप से दिखाई पड़ रहे हैं।
इसी तरह तमाम सरकारी नौकरियों में भी घालमेल दिख रहा है। जिसके बारे में सरकार भी अपने ढंग से बता रही हैं लेकिन सरकार द्वारा यदि उपरोक्त समस्याओं का तत्काल विचार कर निदान नहीं निकाला गया तो उनके सामने एक बड़ी समस्या तैयार हो सकती है।
 उपरोक्त समस्या की जड़ जनसंख्या वृद्धि है, सरकार इसके लिए तत्काल जनसंख्या नियंत्रण कानून लाकर भविष्य की समस्या का निदान निकाल सकती है और वर्तमान को भी उपरोक्त समस्याओं को सरकार चाहे तो दृष्टिगत रखते हुए इच्छाशक्ति के बल पर कार्य करें। देश की नामी-गिरामी सरकारी संस्थाएं जिस प्रकार से बंद हैं उसमें से कइयों के गुमराह करने के नियत से समय समय पर भर्तियां निकाली जाती है और जब बच्चे फार्म भर देते हैं उसके बाद भर्तियां निरस्त कर दी जाती है, इससे यही लगता है कि इसी के माध्यम से बेरोजगार बच्चों से फार्म आज जमा करवा करके अपने खर्चे निकाले जाते हैं जो बहुत ही विचारणीय एवं सोचनीय विषय है। इस पर भी सरकार को बहुत ही संजीदगी से देखना चाहिए।
महंगाई तमाम घरेलू सामानों के साथ-साथ सब्जियां पर भी सिर चढ़ कर बोल रही है उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि महंगाई कम करना सरकार की बस से बाहर निकल चुकी है। यही नहीं जिस प्रकार से पेट्रोल डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं यह भी महंगाई बढ़ने का बड़ा कारण है इस आधार पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है कि महंगाई को कंट्रोल करने के लिए पहले जनसंख्या नियंत्रित करना होगा, जो सरकार के हाथ में है।
देश की सरकारों द्वारा जिस प्रकार से कृषि पर कानून बनाया गया जिसके लिए तमाम नियम बताए जा रहे हैं जिसके नियम और कानून महंगाई पर काबू नहीं कर पा रहे हैं वह कानून आज दिखावा साबित हो रहे हैं जिस पर सरकार अंकुश लगाती है लेकिन वर्तमान महंगाई पर पता नहीं क्यों सरकार भी म्यूट है।
यहां यह भी बताते चलें कि भाजपा की केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा जिस प्रकार से किसानों की आय दोगुनी करने के लिए हर मीटिंग हर कार्यक्रमों में कहा जा रहा है लेकिन वही इनके मंसूबों को और योजनाओं को फेल करते आ रहे गुरु घंटाल लोग हैं, सरकार सही समय पर इस पर ध्यान दें तो किसान की आय भी दोगुनी हो सकती है और महंगाई पर भी काबू पाया जा सकता है।
मेरा मानना है कि देश में महंगाई को कम करने के लिए देश में एक कठोर नीति की आवश्यकता है जिसके उल्लंघन करने पर कठोर सजा की व्यवस्था हो और उसका सामाजिक बहिष्कार हो, जिसके आधार पर भी महंगाई पर काबू पाया जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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