गर्दिश में संग छोड़ ना देना
गर्दिश में संग छोड़ ना देना,
हम सफर राहें मोड़ देना।
ढेरों तुम फेंको मुझ पर पत्थर,
हमें आता है पत्थरों को निचोड़ देना।
तुम चिरागों सूरज बनकर,
आंधियों को झिंझोड़ देना।
जब कहानी उसे सुनाना मेरी,
मेरी मौत की खबर छोड़ देना।
जुल्म की इंतहाँ, यह भी तो,
फूल खिलते ही उसे तोड़ देना।
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- संजीव ठाकुर, रायपुर (छत्तीसगढ़)।
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