देश विदेश में जितने भी संघर्ष भारतीयों ने किए वे सभी हिंदी के माध्यम से ही किए गए:- वेद प्रकाश  बटुक 

मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग मे ं चल रहे दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन विदेशों में हिंदी शिक्षण एवं रोजगार सत्र का आयोजन किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रो वेदप्रकाश वटुक वरिष्ठ साहित्यकार ने की। सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. रामप्रसाद भट्ट,हेमबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी, विशिष्ट अतिथि पद्मश्री डॉ तोमियो मिजोकॉमी, ओसाका विश्वविद्यालय जापान, डॉ. संध्या सिंह, हिंदी विभागाध्यक्ष, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ  सिंगापुर, प्रो. कुमुद शर्मा, निदेशक, हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय, दिल्ली शामिल रहे।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो वेदप्रकाश वटुक ने कहा कि देश विदेश में जितने भी संघर्ष भारतीयों ने किए वे सभी हिंदी के माध्यम से ही किए गए है। गदर जैसा क्रांतिकारी अखबार, विदेशी धरती पर निकला जो हिंदी का समाचार पत्र था। आज ंिहंदी के नेता, कवि, पत्रकार सरकारी नीतियों का ही पिष्टपेषण कर रहे हैं। उनके काम में कोई मौलिकता नहीं है। हिंदी को यदि विश्व भाषा बनाना है तो हिंदी में विभिन्न विषयों में शोधए अध्ययन अध्यापन से संबंधित पत्रिकाओं का विकास करना होगा।

मुख्य अतिथि प्रो. रामप्रसाद भट्ट ने कहा कि जर्मनी विश्व की बड़ी शक्तियों में से एक है। जर्मनी में बहुत पहले संस्कृत व्याकरण पर काम शुरू हो गया था क्योंकि जर्मनी भारतीय संस्कृति को समझना चाहता था। समय की पाबन्धी विकास के लिए मूल में निहित हैं। हमें समय का मूल्य समझना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि डॉ. तोमियो मिजोकॉमि ने कहा कि जापान के राष्ट्रीय नाट्य विद्या के हिंदी नाटकों का मंचन ंिकया जाता है। जिसमें 1999 से अब तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा विश्व के अलग.अलग देशों में अनेकों नाटकों का नाट्य मंचन किया जा चुका है। जिसके अन्तर्गत 2004 में भारत में भी मेरठ के साथ.साथ दिल्ली जैसे शहरों में जापानी कलाकारों द्वारा नाटकों का मंचन किया जा चुका है। आत्म विश्वास के साथ हिंदी के विकास में प्रगति कर सकते हैं। भारत संभावनाओं से भरा देश है। उसमें भाषाए बाजार, सभी ओर रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।

विशिष्ट अतिथि डॉ. संध्या सिंह ने कहा कि सिंगापुर में भारतीयों की आबादी काफी है। हिंदी से जुड़े अनेक शिक्षण संस्थान सिंगापुर में हिंदी शिक्षण कर रहे हैं। अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में भी हिंदी में अध्ययन अध्यापन हो रहा है। 1989 से सिंगापुर में हिंदी शिक्षण हो रहा है। सिंगापुर की भाषाई नीति हिंदी शिक्षण के लिए सहयोगी है प्ब्ब्त् से हिंदी शिक्षण के संदर्भ में डवन भी साईन किया गया। यहाँ चीनीए मलयए भारतीय छात्र हिंदी के विद्यार्थी हैं। पाठ्य पुस्तके हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं जैसें बंगाली, गुजराती, उडिया आदि भाषाओं में भी उपलब्ध है। सिंगापुर में शिक्षण, अनुवादक, दुभाषिया और मंत्रालयों में भी ंिहंदी विद्यार्थियों के लिए रोजगार उपलब्ध हैं। नर्सिंग, यूट्यूबर, स्टैंडअप कामेडी आदि क्षेत्रों में भी रोजगार की पर्याप्त संभावनाऐं हिंदी भाषियों के लिए हैं।

इसी क्रम में संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र हिंदी लेखन अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को आयोजित किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रो विभूति नारायण राय, पूर्व कुलपति,महात्मा गॉधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी वि वि वर्धा ने की। मुख्य अतिथि रामदेव धुरंधर, वरिष्ठ साहित्यकारए मॉरीशस, सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. राकेश बी.दुबे, विशेष कार्याधिकारी हिंदी, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली, शमिल रहे।

आज के कार्यक्रम में डॉ रेखा चौधरी, डॉ कृष्णा देवी, डॉ यासमीन, डॉ असलम खान, डॉ उमा, डॉ ममता, डॉ. अमित कुमार, डॉ. सुमित नागर, डॉ. मोनू सिंहए डॉ आंचल, डॉ. राजेश कुमार, डॉ. विद्यासागर सिंह, डॉ प्रवीन कटारिया, आदि उपस्थित रहे।

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