जयश्री बिरमी, अहमदाबाद

खूब चर्चा में है मुख्यमंत्री चन्नी का पराक्रम, कांड तो शायद कह सकते इसे।जो कुछ सुना और देखा है मीडिया में वह देख के थोड़ा पंजाब की चरणजीत चन्नी की सरकार ने पीएम मोदी की रैली रोकने के लिए हथकंडा अपनाया या महज एक हादसा या कॉइंसिडेंट था ये सोचने वाली बात है।
ये एक प्रोटोकॉल हैं कि जब प्रधानमंत्री किसी भी राज्य में जाते हैं तो मुख्यमंत्री, राज्य सचिव और डीजीपी प्रधानमंत्री का स्वागत करने पहुंचते हैं।लेकिन जो चिला ममता बैनर्जी ने शुरू किया था वही पंजाब में भी अजमाया गया था। अगर मुख्यमंत्री नहीं आते तो राज्यसचिव और डीजीपी तो जरूर आते हैं, लेकिन यहां तो तीनों में से कोई भी नहीं आया। जब प्रधानमंत्री का काफिला फिरोजपुर जाने के लिए निकला तब राज्य सचिव और डीजीपी की गाड़ी भी थी लेकिन उसमे वे लोग खुद नहीं थे। ऐसा क्यों ? जब प्रोटोकॉल है तो सिर्फ गाड़ियों से वह पूरा नहीं हो सकता। उसमें उनका हाजिर होना भी आवश्यक था। वे लोग क्यों शामिल नहीं थे उनके साथ ये किस और इशारा कर रहा हैं? उनकी अनुपस्थिति कुछ निर्देश कर रही हैं क्या? कुछ खतरनाक परिस्थिति का आगाज था क्या? दोनों जो हाजिर  नहीं थे उनमें से एक तो पंजाब पुलिस का मुखिया था और दूसरा प्रशासन का मुखिया था, जो अपने किस  प्रोटोकॉल का पालन सिर्फ अपनी गाडियां भेज कर के कर रहे थे।


 जब प्रधानमंत्री किसी राज्य में जाते हैं तो उनके मार्ग को सेनेटाइज किया  जाता है। प्रधानमंत्री किस रास्ते से कब और कैसे जायेंगे उसका पता सिर्फ स्पेशल प्रोटेक्टेक्शन ग्रुप एसपीजी को और राज्य के पुलिस अधिकारियों को ही पता होता है। इस माहिती को बहुत ही गुप्त रखा जाता है। जब सुरक्षा का पूरा इंतजाम हो जाए तभी उनके काफिले को हरी झंडी दिखाई जाती हैं।और तभी काफिला आगे बढ़ सकता है। अब प्रश्न ये हैं कि ये माहिती आंदोलनकारियों को कैसे मिली? जरूर इसमें कोई षड्यंत्र होगा क्योंकि ऐसे प्वाइंट पर उनकी गाड़ी को रोका गया जहां से दूसरा कोई मोड़ नहीं था कि रास्ता बदला जाए। एक फ्लाईओवर पर जैसे घेरा गया था काफिले को।
 जब कुछ समय पहले, जहां से काफिला गुजरने वाला था वहां कोई नहीं था किंतु काफिले के आने के कुछ ही देर पहले प्रदर्शनकारियों का पहुंचना भी कुछ शंकाओं जरूर पैदा करता है।
 वहां उपस्थित लोगों का भी वही मानना था कि वे वहां थे ही नहीं तो उनको किसने इत्तल्ला दी कि वहां से प्रधानमंत्री अपने काफिले के साथ निकलने वाले थे, क्योंकि उनका तो सफर हेलीकॉप्टर से होने वाला था जो खराब मौसम की वजह से नहीं हो पाया और योजना बदलकर उनको जमीन के रास्ते से जाना पड़ा। जो रास्ते की सुरक्षा की जिम्मेवारी उस राज्य की पुलिस की जिम्मेवारी होती है। वही उनको गंतव्य के लिए रास्ता तय कर के बताते हैं बहुत हो योजना बद्ध तरीके से ये रास्ता तय किया जाता है, जिससे खतरों का भय न रहे। अगर तय मार्ग पर कोई व्यवधान आए तो उसके लिए एक वैकल्पिक मार्ग को भी तय किया जाता हैं जो कोई आकस्मिक परिस्थिति में उपयोग में लिया जा सके।
किसानों के नाम पर राजनीति जो किसान कानून वापस लेने के बाद खत्म हो गई थी उसका पुनरुत्थान कैसे हुआ? ये जानकारी उन तक किसने पहुंचाई जिससे एक देश के मुखिया की जिंदगी को खतरे में डाल दिया था।क्या इस मामले में कोई दूसरा इरादा दिखता है, सिवाय के उनकी बेइज्जती या उनकी जान को खतरा? अगर उस जगह की ली हुई फोटो या वीडियो घ्यान से देखें तो एसपीजी ने जो गाडि़यां रास्ते में प्रधानमंत्री की गाड़ी आगे अगर गाडियां पार्क करने में आई नहीं होती तो सामने खड़े ट्रक की दिशा देख लगता है की वह सीधा ही उनके काफिले उपर चढ़ा दिया जाता या प्रधानमंत्री की ही गाड़ी पर ही चढ़ाया जा सकता था।
रास्ता साफ करने की कोशिश किसी ने नहीं की एक देश के प्रधानमंत्री जो जनता के द्वारा चुने हुए नेता पहले हैं बाद में बीजेपी के नेता और सबसे बाद में हैं वे खुद। वैयक्तिक मतभेद या राजकीय नफरत का ऐसे अंजाम देना क्या लोकशाही में वाजिब है? इतनी निचले स्तर की राजनीति अगर किसी राजकीय दल ने की है तो ये हमारे देश को एक पतन के रास्ते पर ले जा रहा है। जब देश का मुखिया सुरक्षित नहीं हैं, तो देश कहां से सुरक्षित रहेगा? कौन है इतना असुरक्षित जो एक लोकप्रिय नेता के लिए खतरे पैदा कर रहा हैं?
इतना बड़ा कांड हो गया तो कई लोग उसे अपने गुप्तचर तंत्र को दोष दिया तो कई लोगों ने ट्वीट किया ’हाउ इस द जोश’ जिसे ट्वीटर ने भी ब्लू टिक से नवाजा, ये क्या बयान कर रहा हैं?  देश में हुए ऐसे हादसे से विश्व में जो अपनी छवि कुछ सालों से सुधार पर है उसे खराब कर देंगे। देश के दुश्मन जो देश के विकास से डरे और जले हैं उन्हें खुश कर देंगे। क्या फिर ये उन्हीं के द्वारा प्रायोजित कार्य है ? ऐसे  अपने देश की छवि तो खराब हुई ही हैं किंतु सुरक्षा के मामले के प्रति भी सवाल उठ सकते हैं।
 वैसे तो उस चक्रव्यूह से प्रधानमंत्री निकल तो आए और बड़े ही व्यंगतमक रूप से उन्होंने उन लोगो को संदेश भी दिया कि वे सही सलामत पहुंच चुके हैं। अगर ये उनकी रैली को रोकने के प्रयोजन से हुआ, या उनके प्रचार को रोकने लिए हुआ तो व्यर्थ हैं क्योंकि जो राजनीति हो रही है उससे उन्हें और प्रसिद्धि मिल रही है, वो भी सहानुभूति के साथ जिसे वो लोग नहीं थे। ये सब तो हुआ किंतु उसका परिणाम क्या हुआ?
चन्नी जी ने भी परस्थिति से बहुत ही अलग निवेदन दिया जिसमें उन्हें पता ही नहीं था कि प्रधानमंत्री हवाई मार्ग से जाने वालें थे। रास्ते से जाने वाली बात से वे अनजान थे। जिसे एक दिखावा ही कह सकते हैं। उन्होंने पंजाबियत को सराहा की कैसे होते हैं पंजाबी, अपने मेहमानों के लिए अपना खून बहने वाले होते हैं वो लोग किंतु जो वाणी में दिखा उसे उनके बरताव में नहीं देखा गया। आज हर अखबार में, हरेक टी वी चैनल पर सिर्फ और सिर्फ इस घटना और प्रधानमंत्री जी के चर्चे हो रहे हैं, खूब छाए हुए हैं मीडिया पर, जो रैली के बाद शायद इतनी पब्लिसिटी नहीं मिलनी थी शायद। रैली से भी ज्यादा सहानुभूति  की वजह से ख्याति मिल रही है उनको तो क्या चन्नी साब ने ली उबासी और निगली मक्खी?

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