डाल पर बैठा पंछी बोला,
देख मानव की दुर्दशा।
तू ईश्वर की अनमोल कृति,
तेरे साथ यह क्या हुआ?

रे मानव ईश्वर ने दिया,
तुझे विशिष्ट गुण।
तू कर सकता है,
नव सृजन नव निर्माण।।

क्यों मचा हाहाकार?
क्यों हो रहा तेरा विनाश?
लाशो के अंबार लग रहे,
क्यों हो गया तू लाचार?

तू तो कुछ भी कर सकता है,
धरती को चीर सकता है।
गगन को भेद सकता है,
तू तो सर्वशक्तिमान है।।



हम तो बेजुबान परिंदे,
प्रकृति पर थे निर्भर।
हम भी हो रहे विलुप्त,
जब से कट गए तरूवर।।

पंछी की बात सुनकर,
मानव हुआ शर्मिन्दा।
बोला! हमने जो किया,
उसकी मिल रही सजा।।

इन्सान हो या पशु पक्षी,
जल जीव-जंतु या तरूवर।
सब धरा की धरोहर,
सब सृष्टि की जरूरत।।
----------------
- प्रियंका त्रिपाठी 'पांडेय'
प्रयागराज (उ.प्र.)।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts