- विनोद कुमार दुबे
राबर्ट्सगंज, सोनभद्र।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के समीप राजिम में भगवान विष्णु के चार रूपों को समर्पित भगवान राजीव लोचन के मंदिर में चारों धाम की यात्रा होती है। छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहे जाने वाले राजिम में चारों धाम समाए हुए हैं। त्रिवेणी संगम पर स्थित इस मंदिर के चारों कोनों में भगवान विष्णु के चारों रूप दिखाई देते हैं। भगवान राजीव लोचन का यह मंदिर हर त्योहार पर बदल जाता है।
लोक मान्यता के अनुसार जीवनदायिनी नदियां सोंढूर, पैरी, महानदी संगम पर बसे इस नगर को अर्द्धकुंभ के नाम से जाना जाता है। माघ पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है, जिसमें देशभर के श्रद्धालु शामिल होते हैं। राजीव लोचन मंदिर में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है। आठवीं-नौवीं सदी के इस प्राचीन मंदिर में बारह स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर अष्ठभुजा वाली दुर्गा, गंगा, यमुना और भगवान विष्णु के अवतार राम और नरसिंह भगवान के चित्र अंकित हैं। लोक मान्यता है कि इस मंदिर में साक्षात भगवान विष्णु विश्राम के लिए आते हैं।
राजिम है आकर्षण का केंद्र
सोंढूर, पैरी, महानदी संगम के पूर्व में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है। दक्षिण कोसल के नाम से प्रख्यात यह क्षेत्र प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं कला की अमूल्य निधि संजोए इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और कलानुरागियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से सहस्रों यात्री संगम स्नान करने और भगवान राजीव लोचन एवं कुलेश्वर महादेव के दर्शन करने आते हैं। क्षेत्रीय लोगों की मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा उस समय तक पूरी नहीं होती, जब तक राजिम की यात्रा न कर लें।
प्रदक्षिणा पथ-
गर्भगृह के प्रवेश द्वार के दोनों ओर के प्रदक्षिणापथ का प्रवेश द्वार बना हुआ है। राजीव लोचन मंदिर में तथा यहां के अन्य सांधार प्रकार के देवालयों में प्रदक्षिणा पथ को महामंडप से जोडऩे के लिए बनाए गए प्रवेश द्वार शाखाओं से युक्त हैं। इनके अधो भाग पर गंगा, यमुना नदी, देवियों की मूर्तियां हैं। इस दृष्टि से ये दोनों प्रवेश द्वार विशेष महत्त्व के हो जाते हैं। इन्हें देखने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि इन दोनों प्रवेशद्वारों का संबंध किसी अन्य छोटे मंदिरों से रहा है।

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