Lalit buby- news editor
दरअसल, नया साल हो या कोई पर्व- ये सामूहिकता के कल्याण के भाव पर केंद्रित होता है। समूह के उल्लास में अपना उल्लास तलाशना। यदि हम समाज के बड़े तबके में ऐसी सोच विकसित कर पाते हैं तो हमारा नया साल मनाना सार्थक होगा। सजगता व सतर्कता से यदि देश, समाज, घर-परिवार में महामारी की छाया दूर रहेगी, तो नये साल मनाने के अवसर बार-बार आएंगे।
जरा सोचिए नया साल हम ऐसे माहौल में मना रहे हैं जब एक बार फिर कोरोना महामारी की लहर की आशंका बनी है। नये कोरोना वेरिएंट के खतरे से पूरी दुनिया सहमी है। लेकिन जीवन जीवटता का पर्याय है। सकारात्मक दृष्टिकोण व जीवटता के जज्बे से हम हर दिन को नया बना सकते हैं। हकीकत यही है कि जीवन का उल्लास जब सारी दुनिया मिलकर अभिव्यक्त करती है तो खुशी कई गुना बढ़ जाती है। यह चुनौती का समय है। जब तक नये वेरिएंट की वैक्सीन को लेकर पर्याप्त जानकारी वैज्ञानिकों के पास नहीं है, तब तक बचाव ही कारगर वैक्सीन है। हमने पहली व दूसरी लहर में बहुत कुछ खोया है। आज उसके सबकों से सीख लेकर आगे जीवन तय करने का वक्त है।
यह चुनौती का समय वंचित समाज की मदद को आगे आने का है। सर्वकल्याण की भावना ही हमारे नये साल के संकल्प का आधार होना चाहिए। सही मायनों में दुख बांटने से जो असीम सुख हासिल होता है, वही नये साल के पर्व का मर्म भी है।
निस्संदेह, नया साल एक मानक ही है, जीवन में बदलाव लाने का। हम नये साल पर कुछ अच्छा करने का संकल्प लें और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें। सकारात्मकता की सामूहिक सोच को समाज की ताकत बनाने की जरूरत है। आर्थिक व भौतिक समृद्धि तभी सार्थक है जब हम महात्मा गांधी के ट्रस्टीशिप के विचार को मूर्त रूप दें। अपने पर्याप्त संसाधनों से जरूरतमंदों की मदद करें।
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