पूर्ण आजादी चाहते थे चंद्रशेखर आजाद

शिवचरण चौहान
चंद्रशेखर आजाद के गांव उन्नाव के बदरका में प्रतिवर्ष 6, 7 और 8 जनवरी को चंद्रशेखर आजाद का जयंती समारोह मनाया जाता है। किताबों में उनकी जन्मतिथि गलत पढ़ाई जाती है। आज तक सुधार नहीं किया जा सका है। इस बार भी अनेक लोग चंद्रशेखर आजाद की मूर्ति को नमन करने बदरका पहुंचे और एक बड़ा कार्यक्रम हो रहा है।



 प्रसिद्ध क्रांतिकारी शहीद चंद्रशेखर आजाद संपूर्ण आजादी चाहते थे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर वह पढ़ाई छोड़ कर आजादी के आंदोलन में कूदे थे। गांधी जी द्वारा चौरी चौरा विद्रोह के बाद असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण चंद्रशेखर आजाद ने अपना अलग क्रांति का रास्ता चुना था। वह अंग्रेजों से संपूर्ण आजादी चाहते थे। राजनीतिक आजादी के साथ सामाजिक आर्थिक और भाषा की आजादी के वह पक्षधर थे। अंग्रेजों के बाद जब हिंदुस्तानियों की सरकार आए तो सभी को आर्थिक आजादी भी मिले इसके लिए अक्सर वह अपने साथियों से चर्चा किया करते थे।
हमारे इतिहासकारों ने बहुत  सी बातें घटनाएं छिपाई है। अब इन बातों का उजागर होना बहुत जरूरी है। चंद्रशेखर आजाद के आजाद भारत के बारे में क्या विचार थे? यह देश को बताया जाना जरूरी है। अंग्रेजों के बाद जो कांग्रेस की सरकार आई उसके कई बड़े नेता भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि क्रांतिकारियों को डाकू कहते थे। आजाद की मां आजाद की शहादत के बाद बहुत दिन जिंदा रहीं। कांग्रेस की सरकार ने उनकी सुध नहीं ली तो भगवानदास माहौर ने झांसी में उनको ले जा कर रखा। चंदशेखर की मां के अंतिम दिन बहुत गरीबी में गुजरे लोग उन्हें डकैत की मां कहते थे। भगवानदास माहौर ने जब झांसी में चंद्रशेखर आजाद की मां जगरानी देवी की प्रतिमा लगवाने की कोशिश की तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रतिमा नहीं लगने दी। प्रतिमा लगाने जा रहे लोगों पर गोलियां चलवा दी जिसमें तीन लोग मारे गए और दो दर्जन से अधिक लोग घायल हुए थे।
चंद्रशेखर आजाद की जन्मतिथि आज भी गलत पढ़ाई जाती है। इन गलतियों को कौन सुधरेगा और अब अगर नहीं सुधारी गईं तो कब सुधारी जाएंगी। यह गलतियां अक्षम्य हैं और लगता है कि जानबूझकर की गई हैं। हमारे बच्चों को हमारे इतिहास में अभी भी पढ़ाया जाता है कि भगत सिंह एक आतंकवादी थे। इसी तरह चंद्रशेखर आजाद को डाकू बताया गया है उनकी जन्म तिथि 23 जुलाई 1906 पढ़ाई जाती है। जबकि चंद्रशेखर आजाद का जन्म 7 जनवरी 1986 को बदरका उन्नाव में हुआ था। आजादी के इतने  दिनों बाद भी यह गलतियां आज तक नहीं सुधारी गईं। तो लगता है यह सब जानबूझकर किया गया था।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 7 जनवरी 1906 बदरका गांव में अपने नाना के घर में हुआ था। चंद्रशेखर आजाद के नाना का नाम देवकीनंदन था जो दूध का व्यापार करते थे और कानपुर ले जाकर दूध बेचते थे। चंद्रशेखर आजाद का पैतृक गांव बदरका उन्नाव जिले में आता है जो कानपुर से बहुत करीब है। चंदशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले जिसे आज अलीराजपुर कहा जाता है के भांवरा ग्राम में ना होकर उन्नाव जिले के बदरका गांव में हुआ था और चंद्रशेखर आजाद बनने के पहले  चौथी कक्षा तक गांव के स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते रहे थे, जबकि इतिहास में पढ़ाया जाता है कि चन्द्र शेखर आजाद का जन्म भांवरा गांव में मध्यप्रदेश में हुआ था।
चंदशेखर के पिता सीताराम तिवारी कानपुर के सचेंडी क्षेत्र के सुरार भौंती खेड़ा गांव के निवासी थे। सीताराम तिवारी का विवाह बदरका उन्नाव निवासी देवकीनंदन की बड़ी बेटी जगरानी देवी के साथ हुआ था। देवकीनंदन गांव में गाय भैंस के दूध का व्यापार करते थे और कानपुर शहर ले जाकर बेचते थे। उन्होंने अपने दामाद सीताराम तिवारी को बदरका बुला लिया जो दूध के धंधे में उनका हाथ बंटाते थे। बदरका में ही जगरानी देवी के कोख से 7 जनवरी 1906 को एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम चंद्रशेखर रखा गया। चंद्रशेखर तिवारी। चौथी कक्षा तक की पढ़ाई चंद्रशेखर ने अपने गांव के स्कूल में ही की। नाना देवकीनंदन के ना रहने पर उनके पिता की हालत खराब हो गई और वह जगरानी देवी के साथ मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भांवरा चले गए। वहां उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें एक कोठी में 8 रुपये महीने की चौकीदारी की नौकरी दिलवा दी थी। चंदशेखर को काशी संस्कृत विद्यापीठ में पढ़ने भेजा गया था। उनके पिता का मानना था किस संस्कृत पढ़ कर चंद्रशेखर आजाद कर्मकांड कराना सीख जाएंगे और अपने परिवार का पेट पाल सकेंगे। जिस तरह गरीबी के दिन बचपन में उन्हें देखने पड़े हैं उनके बेटे चंद्रशेखर को नहीं देखने पड़ेंगे। सीताराम  तिवारी को क्या पता कि उनका बेटा अपने भाग्य में क्या लिखा कर लाया है।
 चंद्रशेखर आजाद की शहादत दिवस को लेकर कोई विवाद नहीं है 27 फरवरी 1921 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेज अंग्रेज सुपरिटेंडेंट और इलाहाबाद पुलिस से लड़ते हुए उन्होंने आखिरी गोली अपनी कनपटी में मार कर अपना बलिदान दे दिया था। चंदशेखर आजाद उस दिन आनंद भवन से किसी से मिलकर आए थे। अल्फ्रेड पार्क में उनके साथ उनका एक साथी भी था। इस बात की जांच होनी चाहिए की तत्कालीन अंग्रेज पुलिस कप्तान नॉट बाबर को किसने सूचना दी कि चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में बैठे हैं? चंद्रशेखर आजाद के साथ जो साथी  था उसे अंग्रेज पुलिस ने पकड़ा क्यों नहीं भगा क्यों दिया? चंद्रशेखर आजाद के साथ हुई गद्दारी की जांच की जानी चाहिए और असलियत देश की जनता के सामने आनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद ने काशी विद्यापीठ से चंद्र शेखर आजाद का पता लेकर उनके गांव बदरका उन्नाव आए और आजाद की मां जगरानी देवी से मिले। जगरानी देवी की इच्छा अनुसार ही बदरका गांव में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा स्थापित की गई और जिस घर में आजाद का जन्म हुआ था उसे सरकारी संरक्षण में लेकर उसे आजाद कुटिया के नाम से दोबारा बनाया गया। जो आज भी विद्यमान है। बदरका के आजाद स्मारक का उद्घाटन डॉ संपूर्णानंद ने 1958 में किया था तब से वहां पर चंद्र शेखर आजाद की जयंती प्रतिवर्ष 7 जनवरी को ही मनाई जाती आ रही है।
कानपुर उनका प्रमुख केंद्र था। वह डीएवी कालेज हॉस्टल परमट चुन्नी गंज कई इलाकों में भेष बदलकर छिपकर रहते थे।  चंद्रशेखर आजाद की मौत के बाद उनकी मां जगरानी देवी को बहुत कष्ट सहने पड़े। जब देश आजाद हो गया और जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बन गए तो भी किसी ने आजाद की मां की दिल्ली के किसी नेता ने खोज खबर नहीं ली। जगरानी देवी कभी अपने मायके कभी बदरका और कभी कानपुर के भौती खेड़ा गांव के पास अपनी ससुराल में उपले कंडे जंगल से बीनकर उन्हें बेंच कर अपना पेट भरती थीं। बाद में उन्हें झांसी में भगवानदास माहौर अपने साथ ले गए थे। झांसी में जगरानी देवी का निधन हुआ।
भला हो उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद का जिन्होंने आजाद की मां को खोज कर उनके गांव बदरका में चंद्र शेखर आजाद का स्मारक बनवाया उनके घर को आजाद कुटिया का नाम दिया।
चंद्रशेखर आजाद के सपनों का भारत आज तक नहीं बन पाया। नेता आते हैं उनकी स्मृति में बड़े-बड़े भाषण देते हैं बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते हैं और फिर सब भूल जाते हैं। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा।
(स्वतंत्र लेख, वरिष्ठ पत्रकार, कानपुर)।

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