- शिवचरण चौहान
बेशक आप नया साल मनाएं, किंतु हुड़दंग नहीं। पिछले दो वर्षों से कोरोना के कारण रोमन नए वर्ष के जन्मोत्सव पर बड़ी-बड़ी पार्टियों पर रोंक है किंतु लोग मानते कहां हैं? इस वर्ष भी रोमन वर्ष 2021 के प्रस्थान और 2022 के आगमन पर 31 दिसंबर की मध्य रात्रि तक हुड़दंग होगा। जन्मोत्सव मनाना बुरी बात नहीं है किंतु शराब पीकर हुड़दंग मचाना निश्चित तौर से बुरी बात है। जिससे दूसरे के आराम में सुख शांति में खलल पड़े उसे हुड़दंग कहते हैं। इस पर नियंत्रण होना चाहिए। वैसे पूरी दुनिया में नए वर्ष के आगमन किरात पर हुड़दंग होता ही है किंतु अगर इस पर नियंत्रण किया जा सके तो को रोना, और नए कोरोना वारियर्स ओमिक्रो न पर नियंत्रण हो सकेगा। यदि हम नियंत्रण कर ले गए तो भारत में इसका प्रभाव बहुत कम होगा।


 इस वर्ष 2022 का प्रवेश हो रहा है। कई राज्यों में चुनाव हैं और हजारों हजार युवा नेता नए वर्ष का उत्सव मनाने के लिए बेताब हैं। पंच सितारा होटलों से लेकर रिजॉर्ट्स और फार्म हाउसों में नया वर्ष मनाया जाने लगा है। यहां तक कि गांव-गांव भी नया वर्ष की  पाश्चात्य संस्कृति आ गई है। रोमन कैलेंडर के नए वर्ष पर नए वर्ष का हुड़दंग होता है वैसा और कभी नहीं होता। बात यही तक थी तो ठीक था अब तो सड़कों तक नए वर्ष का उत्सव आ गया है। कोलकाता, मुंबई, चेन्नई दिल्ली, भोपाल, हैदराबाद, बेंगलुरु, चंडीगढ़, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, मेरठ, अलीगढ़, पटना, भुवनेश्वर और ना जाने किन-किन कस्बों गांव तक में नए वर्ष मनाने का फैशन सड़कों पर आ गया है। कोल्ड ड्रिंक और मिठाई की तो छोड़िए नए वर्ष के स्वागत में इतनी अधिक शराब का प्रयोग किया जाता है कि कोई ना कोई अप्रिय घटना जरूर होती है।
31 दिसंबर की  मध्य रात्रि में कुछ देर को बिजली गुल की जाती है और फिर नया वर्ष के आगमन का ढिंढोरा पीटा जाता है। जैसे नया वर्ष आने पर सब कुछ बदल जाएगा अच्छा हो जाएगा। सूरज पूरब की जगह पश्चिम में उगने लगेगा।  अंग्रेजों के जाने के बाद भी भारत में पाश्चात्य संस्कृति इस तरह हावी है कि अभी भी लोग रोमन नया वर्ष मनाने के नाम पर हुड़दंग करते हैं करोड़ों रुपए फूंक देते हैं।
भारतवर्ष में चैत्र  से नया वर्ष शुरू होता है। धर्म के साथ कर्म की भी प्रधानता है इसी कारण चैत में जब नई फसल आ जाती है तो भारतीय नववर्ष मनाते थे किंतु पाश्चात्य सभ्यता में जनवरी पहला महीना होता है। चैत्र नवरात्र के प्रथम दिन नीम की पत्ती और गुड  और मिश्री की डली देकर एक दूसरे को बधाई देने की परंपरा भारत की सदियों पुरानी रही है। भारत में व्यापारी लोग दीपावली पर बही बदलते थे और नया वर्ष मनाते थे। भारत का नया वर्ष सूरज के साथ जुड़ा हुआ है। हमारे यहां सौर कैलेंडर प्रचलित। सौर पंचांग प्रचलित है। पहले रोमन नया वर्ष भारतीय संस्कृति में नहीं बनाया जाता था किंतु जब से नव धनाढ्य बढ़े हैं तब से अंग्रेजों का नया वर्ष भारत में हुड़दंग का पर्याय बन गया है।
यह बात सही है की पूरी दुनिया में रोमन कैलेंडर स्वीकार कर लिया गया है किंतु बहुत से देश अपने स्तर पर अपने स्थानीय कैलेंडर को महत्व देते हैं। भारत में भी विक्रमादित्य मेला लगता है क्योंकि विक्रम संवत की शुरुआत सम्राट विक्रमादित्य के ही समय से हुई थी। हमारा कैलेंडर चांद और सूर्य की गणना के अनुसार बनाया गया है जबकि रोमन कैलेंडर सिर्फ सूर्य की गणना पर आधारित है और इस्लामिक कैलेंडर सिर्फ चंद्र की गणना पर आधारित है। रोमन कैलेंडर में भी 28 दिन की फरवरी होती है जबकि भारतीय कैलेंडर में कम दिन पड़ने पर मलमास का प्रावधान किया जाता है। चंद्रमा पर आधारित तिथियां होती है और घड़ियां होती हैं चौघड़िया होती हैं। ज्योतिष में तो भारतीय कैलेंडर है स्वीकार किया जाता है। शैक्षिक कैलेंडर में और रोमन ही है। किंतु रोमन कैलेंडर में भी हम छुट्टियां विक्रम संवत के अनुसार कर लेते हैं।
आप कोई भी त्यौहार मनाइए। नया वर्ष का उत्सव मनाइए। गिरजाघर चर्च जाइए। फाइव स्टार होटलों, रेस्तरां, ढाबे पर जाइए जाइए। खूब सेलिब्रेट कीजिए किंतु हुड़दंग मत मचाइए। गा बजा कर कोरोना और ओमीक्रोन को मत बुलाइए। चुनाव प्रचार में भी सावधानी बरतिए  वर्चुअल मीटिंग करिए।
(लेखक स्वतंत्र विचारक हैं)

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