वो मुझे आजमा लें, जितना आजमाना चाहते हैं।
पर इसके बाद, ना उससे कोई बहाना चाहते हैं।।
छू नहीं पाये अभी, लफ़्ज़ और अहसास जिसको ।
हम उसे अपनी धड़कनों की, तलब सुनाना चाहते हैं।।
मरते मिटते आये हैं हम, जिस पर एक मुद्दत से।
उसी से अपनी सारी ख्वाहिशें मिटाना चाहते हैं।।
नज़र मिलने के इंतजार में, जिसे निहारा करते हैं।
हम उसी के दिल में, ताउम्र कैद हो जाना चाहते हैं।।
मेरी रूह को तड़पाया है, जिन्होंने फ़ुर्सती लम्हों के लिए।
उनसे मेरे हिस्से के, चुराये पलों का हिसाब पुराना चाहते हैं।।
किया है कुछ आर्थिक जरूरतों ने दूर दूर हमको।
पास आकर उनके आगोश में, सबको भूलाना चाहते हैं।।
जिनके इंतजार की इन्तहा में, हो गई पतझड़ सी जिंदगी।
चाहतों का मयूरा कुहक उठे, मधुमास सुहाना चाहते हैं ।।
चातक बन"सीमा" जिस घटा से उम्मीद लगा बैठी।
हम अहसासों के उसी सावन को बुलाना चाहते हैं।
- सीमा लोहिया
झुंझुनूं (राजस्थान)।
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