तुम बिन सूरज नहीं उगता
तुम बिन सबेरा नहीं होता।
तुम बिन रात में चाँद नहीं आता
तुम बिन मेरी रात नहीं कटती।

तुम बिन जठराग्नि में आग नहीं लगती
तुम बिन पानी से भी प्यास नहीं बुझती
तुम बिन घर, घर नहीं लगता
तुम बिन में घर पर नहीं टिकता।

तुम बिन बागों में फूल नहीं खिलते
तुम बिन भंवरे भी आवारा हो गए।
तुम बिन बागों में  फूल नहीं खिलते
तुम बिन ये धरा भी प्यासी लगती है।


तुम बिन ये शहर अजनबी लगता है
तुम बिन सब चेहरे धुंधले दिखते है।
तुम बिन यारो में भी मन नही लगता
तुम बिन अपने भी पराये लगते है।

तुम बिन आँखें सूनी सूनी लगती है
तुम बिन चेहरे पे नूर नहीं रहता।
तुम बिन बाल बिखरे बिखरे रहते हैं
तुम बिन जुबा भी खामोश रहती है।

तुम बिन सारे मौसम सूने सूने हो गए
तुम बिन मेरे दिन रात एक हो गए।
तुम बिन मैं, मैं ना रहा तेरे बिन
तुम बिन मैं बुत बन गया तेरे बिन।

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कमल राठौर साहिल
शिवपुर (मध्य प्रदेश)।

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