प्रो. नंदलाल मिश्र
आगामी वर्ष अर्थात 2022 के प्रारंभ में पांच राज्यो में चुनाव होने हैं। उनमें उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है और महत्वपूर्ण भी। यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि राष्ट्रीय राजनीति में इसकी अहम भूमिका होती है। इसे देखते हुए सभी राजनैतिक दल सक्रिय हो चुके हैं और सबकी तमन्ना है कि उन्हें अधिक से अधिक सीटें मिलें और वह सरकार बनाये। यहाँ सक्रिय होने वाले दलों में भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा और बीसों छोटे-मोटे दल हैं।जिन्होंने उत्तर प्रदेश के लिए कभी कोई कार्य नहीं किया वे भी राजनीति का खेल बनाने व बिगाड़ने की जुगत में हैं।



इसमें दो अहम पार्टियां भाजपा और कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर के दल हैं । भाजपा पूरे देश में अपनी मजबूत पकड़ बनाये हुए है वहीं कांग्रेस की अपनी सत्तर वर्ष की राजनैतिक विरासत है। विगत तीन दशकों से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कुछ खास नहीं कर पाई जिसके अनेकों कारण हैं। केंद्र की सत्ता में बने रहने के लिए कई राज्यों में अनचाहे समझौते उसे करने पड़े और वे समझौते ही बाद के दिनों में उसके लिए ग्रहण बनते चले गए। स्थिति यह हुई कि राज्यों में वह कमजोर होती चली गयी और क्षेत्रीय दल मजबूत होते चले गए।
अब स्थिति यह हुई कि क्षेत्रीय दलों की बाढ़ आ गयी। लगभग सभी राज्य क्षेत्रीय दलों की गिरफ्त में आ गए और राज्य भी इन्हीं दलों में अपना भविष्य देखने लगे। ऐसे में कांग्रेस को केंद्र में बड़ी चुनौती भाजपा से मिली और राज्यों में कमजोर कांग्रेस केंद्र की राजनीति में मात खाती चली गयी।
 तो क्या यह मान लिया जाय कि उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव पर केंद्रीय मुद्दों का असर नहीं होगा। यह कहना जल्दबाजी होगा। भाजपा की सत्ता केंद्र और उत्तरप्रदेश में है। योगी की सरकार उत्तर प्रदेश में साढ़े चार वर्षों से काबिज है। विकास के कार्य सत्तासीन दल ही करते हैं क्योंकि उनके पास अवसर होते हैं। विपक्षी दल विभिन्न समस्याओं को समय समय पर उठाते हैं। उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों ने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया। चाहे उसके कारण जो रहे हों। अन्यथा बहुत से विकास के कार्य और हो सकते थे।सरकार की तरफ से अनेक विकास के कार्य हुए हैं। सबसे बड़ी सफलता गुंडाराज को खत्म करना था जो निरंतर प्रगति पर है। यूं तो उत्तर प्रदेश अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए देश मे अग्रणी था। यहीं पर भगवान राम, यही पर श्रीकृष्ण इसी धरती पर गंगा जमुनी संस्कृति का उत्थान हुआ था पर नब्बे के दशक से इसमे जो ह्रास आना शुरू हुआ वह निरंतर जारी है। हर घर में एक नेता का पैदा होना उत्तर प्रदेश की पहचान बन चुकी है।
मेरा मकसद किसी राजनैतिक दल की समीक्षा नहीं है। मेरा मकसद है चुनाव की आहटों के बीच जनता की आहटों को समझना और और उभरते हुए सामाजिक समीकरणों को पहचानना जो चुनाव में अहम रोल निभा सकते हैं।यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि जनता विभिन्न जातियों में बंटी हुई है और नए नए नेतागण उसे और उभारने में जुटे हुए हैं। इसीलिए यह समझ पाना कि कौन जाति किसके पक्ष में है कठिन है। जाति किसी एक नेता की जागीर नहीं है। जनता ने देखा है कि जाति के नाम पर वोट लेकर उस नेता ने सिर्फ अपना राज्य स्थापित किया और उन भोली भाली जनता का कोई विकास नहीं हुआ।
 मेरा मुख्य विषय यह था कि चुनाव आते आते लोगों में चेतना का अभ्युदय तो हो रहा है पर वह व्यक्तिगत न होकर क्लस्टर में हो रहा है।बड़े समूह टूट रहे हैं छोटे समूह बन रहे हैं अर्थात छोटे छोटे समूह समान विचारधारा पर आगे बढ़ेंगे। ऐसे में क्षेत्रीय दल आगामी चुनाव में निर्णायक होंगे। बड़े और राष्ट्रीय दलों को अपने एजेंडे को धरातल से जोड़ना होगा। किसानों की नाराजगी भी चुनाव को प्रभावित करेगी। महगांई आसमान छू रही है। पेट्रोल, डीजल, खाद्य तेल, सब्जी गैस सिलिंडर जैसे आवश्यक सामग्री लोगों के क्रय शक्ति को चुनौती दे रहे हैं।
चूंकि उत्तर प्रदेश की राजनीति और चुनाव परिणाम राष्ट्र की दिशा और दशा दोनों को प्रभावित करते हैं इसलिए आवश्यक है कि मतदाता सचेत और जागरूक होकर अपना भविष्य देखे अन्यथा राष्ट्र कमजोर होने से उनका अस्तित्व भी खतरे में आएगा इस पर ध्यान जरुरी है। उत्तर प्रदेश की लड़ाई तीन मुख्य विचारधाराओं में हैं- सबका साथ सबका विकास, सर्वधर्म समभाव और समाजवाद। जनता को असली मुद्दा पहचानना होगा क्योंकि कसमें वादे प्यार वफ़ा वादे हैं वादों का क्या?

- महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विवि चित्रकूट (सतना)।

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