होठों की प्यास अब तक अधूरी प्रिये।
अब तो मिलना बहुत है जरूरी प्रिये।
गीत मेरे सदा ही पुकारे यहाँ,
रात दिन मैंने कैसे गुजारे यहां।



युग सी लम्बी है लगती ये दूरी प्रिये।
अब तो मिलना बहुत है जरूरी प्रिये।
स्वप्न कितने सजाए तुम्हें क्या पता।
तुमसे दूरी बनी अब हमारी सजा।
आओ कर दो कमी अपनी पूरी प्रिये।
अब तो मिलना बहुत है जरूरी प्रिये।
ये वादी फिजाएं है सूनी यहाँ।
पीर बढ़ती ही जाती है दूनी यहाँ।
सोंच अच्छी नहीं यह गरूरी प्रिये।
अब तो मिलना बहुत है जरूरी प्रिये।
-----------
- अशोक प्रियदर्शी
चित्रकूट (उप्र)।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts