मुझे रोमांच से भर देते हैं
ये आढ़े - टेढ़े पिन-नुमा रास्ते
जब इन पहाड़ी रास्तों से
गुजरते हुए ठंडी हवा
मेरे शरीर को छूती हुई
गुजरती है तो
मन उल्लास से भर जाता है।



ऊपर वाले की जन्नत तो
किसी ने नही देखी
मगर प्रकृति की
यह जन्नत मुझे बुला रही है
ये आसमान छूते
ऊँचे ऊंचे पहाड़
मुझे अपनी और बुला रहे हैं
ये अठखेलियां करते
कल कल बहते झरने
मुझे बुला रहे हैं
यह आसमान को निहारते
 ऊँचे ऊंचे पेड़ मुझे
अपनी ओर बुला रहे हैं।

जिस तरह पहाड़ी से
आवाज देने पर
अपनी ही आवाज
 दूसरे पहाड़ से टकराकर
 वापस आ जाती है
ये पहाड़ मुझे
अलविदा बोलकर
फिर से प्रकृति की गोद में
आने का निमंत्रण दे रहे हैं।

वो दूर पहाड़ी के पीछे से
प्रतिदिन नई उमंगों के साथ
उगता सूरज मेरे अंतर्मन में भी
नया सबेरा कर देता है
वो सांझ ढले डूबता सूरज
अपने संग उम्मीदों का पिटारा
छोड़ कर चांदनी रात की सौगात
हम सब को उपहार में दे जाता है

मैं फिर लौट आया हूं
इन पहाड़ों के बीच
इन झरनों के बीच
 इन ऊंचे ऊंचे पेड़ों के बीच
 इन ठंडी हवाओं को छूने
मैं फिर से लौट आया हूं।
सूर्यादय ओर सूर्यास्त के
वो अविस्मरण पल को देखने
 मैं फिर लौट आया हूं।
--------------

- कमल राठौर साहिल
श्योपुर, मध्य प्रदेश। 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts