मेरठ।  सरदार पटेल सुभारती विधि संस्थान, स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय, के बी.ए.एल.एल.बी के छात्र-छात्राओं के दल ने जिला न्यायालय मेरठ द्वारा आयोजित लोक अदालत का शैक्षणिक भम्रण कर वहाँ की कार्यप्रणाली व विभिन्न गतिविधियों का अध्ययन किया। 

       सुभारती लॉ कॉलिज के  राजेश चन्द्रा (पूर्व न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय,प्रयागराज) के मार्गदर्शन व सुभारती लॉ कॉलिज के संकायाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) वैभव गोयल भारतीय के निर्देशन में छात्रों का यह दल जिला न्यायालय मेरठ द्वारा आयोजित लोक अदालत की गतिविधियों को समझने एवं सीखने के लिए रवाना किया गया। अपने संदेश में पूर्व न्यायमूर्ति राजेश चन्द्रा ने छात्रों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि लोक अदालत की प्रक्रिया को समझना विधि के छात्रों के लिए अत्यधिक आवश्यक है। लोक अदालतें विभिन्न प्रकार के छोटे–बड़े विवादों को त्वरित रूप से निर्णायक स्थिति तक पहुँचानें का कार्य करती है। इसलिए लोक अदालत की कार्यप्रणाली को करीब से जानने का मौका आज आपको मिल रहा है। आज का यह शैक्षणिक भ्रमण विधि के छात्रों के लिए अत्यधित लाभप्रद होगा।    

इस अवसर पर सुभारती लॉ कॉलिज के संकायाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) वैभव गोयल भारतीय ने छात्रों को लोक अदालत के महत्व के विषय में बताते हुए कहा कि लोक अदालत के माध्यम से वादकारी अपने विवादों को कम समय में शीघ्रता से सुलझा सकते हैं, और न्यायालयों पर काम के बढ़ते हुए बोझ को कम किया जा सकता है। जैसा की नाम से स्पष्ट है लोक अदालत का अर्थ है जनता का न्यायालय। लोक अदालत वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया का ही एक माध्यम है, जो कि प्राचीन समय में भारतीय ग्रामीण परिवेश में पंचायत व्यवस्था के रूप में प्रचलित थी। लोक अदालत को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत सिविल कार्यवाही की शक्तियां प्राप्त है। इसके साथ ही दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 व अध्याय 6 के लिए की गई कार्यवाही भी सिविल कार्यवाही होती है। वर्ष 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 39 (क) संविधान में जोडा गया। जिसके द्वारा शासन से यह अपेक्षा की गई कि वह सुनिश्चित करे कि भारत का कोई भी नागरिक आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और किसी अन्य प्रकार के विभेद के आधार पर न्याय पाने से वंचित न रह जाए। इस उद्धेश्य की पूर्ति के लिए 1980 में केन्द्र सरकार के निर्देश पर सारे देश में कानूनी सहायता बोर्ड स्थापित किये गये। भारत में लोक अदालतों की शुरूवात सन् 1982 में गुजरात मे हुई। सन् 1987 के विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम से लोक अदालत को वैधानिक मान्यता प्रदान की गई। लोक अदालत का उद्धेश्य समता के आधार पर वादकारियों को त्वरित न्याय प्रदान करना है। उन्होनें बताया कि लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड एक सिविल न्यायालय द्वारा पारित डिक्री के जैसा होता है और इसका निष्पादन सिविल न्यायालय द्वारा पारित डिक्री की तरह से कराया जा सकता है। लोक अदालत द्वारा मुकदमों के निपटारे से वादकारी का वकील पर खर्चा नही होता और कोई फीस नही लगती है, पुराने मुकदमों की कोर्ट फीस वापस हो जाती है, मुआवजा व हर्जाना तुरन्त मिल जाता है, सभी को आसानी से न्याय मिल जाता है ।
जिला न्यायाधीश दिनेश चन्द्र शर्मा की अनुमति द्वारा इस कार्यक्रम की रूप रेखा रखी गई थी, अपने उद्धबोधन में उन्होनें विधि के छात्र-छात्राओं को प्रेरित करते हुए कहा कि इस तरह की शैक्षणिक गतिविधियाँ आपके कैरियर के लिए अतिआवश्यक हैं, लोक अदालत की कार्यप्रणाली को करीब से जानने का आज आपको मौका मिल रहा है। उन्होनें छात्र-छात्राओं से वार्तालाप भी किया। शैक्षणिक भ्रमण के इस कार्यक्रम में विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला न्यायालय मेरठ की सचिव श्रीमति अंजु काम्बोज का विशेष सहयोग रहा। छात्रों ने उनसे लोक अदालत की प्रक्रिया और कार्यप्रणाली को समझने का प्रयास किया। छात्रों ने बैंक लोन व बैंक से सम्बन्धित अन्य मामलों व परिवार न्यायालय की प्रक्रिया भी जानी । परिवार न्यायालय के न्यायाधीश इरफान कमर जी द्वारा परिवार न्यायालय के क्षेत्राधिकार व परिवार से सम्बन्धित विभिन्न वादों का निपटारा किस प्रकार से किया जाता है इसकी विस्तृत जानकारी छात्रों के दल को दी। सुभारती लॉ कॉलिज के शिक्षकों डॉ. सारिका त्यागी, डॉ. सरताज अहमद व अंजुम जहां के नेतृत्व में छात्र-छात्राओं का यह दल लोक अदालत की प्रक्रिया को समझने के लिए गया था।
आशुतोष, भावनी, विधि, सृष्टि, नेहा, तनुप्रिया, रिया, रिषभ, कृष्णा, सौरभ, शेवाँग, जुआला, टाडर, अदनान, देवराज, समीर, उषभ आदि छात्र-छात्राएं इस शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम में उपस्थित रहें।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts